2019 की 20 चर्चित पुस्तकें और उनके लेखक || 2019 Top Famous 20 Books MCQ
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तनोट माता जी की पूजा में प्रयुक्त सामग्री की महत्ता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी देवताओ की कृपा प्राप्त करने के लिए उनके पूजन में पूजा सामग्री का प्रयोग करना अनिवार्य मन गया है। इस पूजन सामग्री का आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व भी है। इनके प्रयोग से ह्रदय में देवी देवताओं के प्रति श्रद्धा भहव जागृत होता है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए कुमकुम, रिलाक, पुष्प, अक्षत, बाटी, कपूर, श्रीफल, गूगल, का शास्त्रों की विधान के अनुसार महत्ता है। तनोट माता के पूजन में प्रमुख रूप से अगरबत्ती, धुप, दीप, नारियल, मेहँदी, ध्वजा, बिंदिआ, कुमकुम रोली एवं रुमाल एवं फूलो का पूजन सामग्री की रूप में प्रयोग किया जाता है। नवरात्रो में घर में भगवती माता के अर्चना के रूप में प्रयोग किया जाता है। नवरात्रो में घर में भगवती माता की अर्चना के लिए जो बोये जाते है। तनोट माता के समक्ष घी दीप , धूप, ध्यान, चन्दन, केसर, कुमकुम के पूजन से मन को असीम आनंद एवं शांति प्राप्त होती है। वातावरण में उत्पन्न विभिन्न प्रकार के हानिकारक कीटाणु भी धूप के प्रभाव से मर जाते है। तनोट मुख्यता ओढ़नी, कुमकुम, बिंदिया, मेहँदी एवं कंगन का चढ़ावा किया जाता है। प्रसाद के रूप में सूखे मेवे, मखाना, पताशों का भी भोग लगाया जाता है। नारियल में दुर्गा, शिव, गणेश जी, श्रीराम, श्री कृष्ण इन 5 देवताओं की तरंगे आकृष्ट करने की एवं उन्हें प्रक्षेपित करने की क्षमता होती है। इसलिए नारियल को सबसे शुभ फल एवं सबसे अधिक सात्विक प्रदान करने वाला फल कहते है। गूगल के धुप की तीव्र सुगंध होती है इसमें देवता का तत्त्व कार्यरत होकर धूप के माध्यम से सूक्षम रूप से रज तम से लड़ता है। इसमें वातावरण में सात्विक गुण की प्रबलता बढ़ती है। इस कारन पूजा एवं आरती से पहले धुप को दिखाय जाता है। कुमकुम एवं गुलाल के कारन पर्यावरण में चेतनायुक्त छिपी हुई शक्ति प्रवाहित होती है। कुमकुम को माथे पर लगाने से अनिष्ट शक्तिया शरीर में प्रवेश नहीं करती तथा ध्यान केंद्रित होता है। रोली को हाथ में बांधने से सुरक्षा चक्र का निर्माण होता है। जो मनुष्य में उत्पन्न अनिष्ट विकारों एवं दुष्प्रभावों को रोकती है।
तनोट माता का नवरात्रो में पूजन
जैसलमेर के लोग जीवन में आश्विन मॉस के शुक्ल पक्ष तथा चैत्र मॉस दे शुक्ल पक्ष को नवरात्रो का धार्मिक उत्सव जिसे लोगभाषा में नौरता कहते है। बड़ी श्रद्धा एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है। नवरात्री के पहले दिन घाट स्थापना कर देवी माता जी की स्तुति की जाती है। इसके पश्चात लगातार नो दिन पूजन किया जाता है। इन नौ दिनों में दी कल्याणी, रोहिणी, काली, त्रिमूर्ति, कुमारिका, चन्द्रिका, सुभद्रा एवं दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है। तथा उन्हें उपहार एवं फल देकर प्रसन किया जाता है। नवरात्रो के दिनों में जैसलमेर में प्रत्येक परिवार द्वारा एवं ग्रामीण क्षेत्रों में भी व्रत रखने का प्रचलन है। श्रद्धालु भक्त बड़ी आष्टा के साथ दिन भर निराहार रहकर व्रत के नियमो का पालन करते है। रात्रि को तनोट माता की पूजा अर्चना करके भोजन ग्रहण करते है। कुंवारी कन्याओं एवं विवाहित स्त्रियों द्वारा पुरे नोरते निराहार रखे जाते है। उनकी अटूट आस्था है की तनोट माता की ड्रिप से उन्हें भूख का एहसास नहीं होता बल्कि आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है। तनोट माता के मंदिर में पुरे 9 दिन श्रद्धालु का आना जला लगा रहता है। और शाम को सभी भक्तजन सामूहिक रूप से तनोट माता की आरती और भजन संध्या में शामिल होते है। इस प्रकार जैसलमेर में तनोट माता की पूजा नवरात्रो में बड़ी धूम धाम से की जाती है। चैत्र एवं आश्विन मॉस नवरात्रो की लिए उपयुक्त माने गए है। क्यूंकि दोनों ही मौसम सर्दी एवं गर्मी के संधिकाल होते है। ऋतू परिवर्तन होने से पर्यावरण में भी परिवर्तन होता है। इसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। वाट, पित्त, कफम से शरीर में विकार उत्पन्न होते है। इस कारन नो दिन तक व्रत करने से विधान से शरीर रोगमुक्त होने के साथ साथ मनुष्य को आत्मशक्ति एवं ऊर्जा प्राप्त होती है। नवरात्रो में माता जी की आरती भजन एवं ध्यान करने से मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है। इस प्रकार नवरात्रो में माता की स्तुति करने से शारीरिक शक्ति में वृद्धि एवं आत्मशक्ति द्वारा बल प्राप्र्त होता है। आधुनिक सुचना तकनीक युग में लोगो का देवी देवताओं से विश्वास कायण है। यह स्वीकार करना होगा की हमारे जीवन में संस्कारों, आदतों विचारो, में गुप्त रूप से दिव्या शक्तिया विध्यमान है। जो हमारे आत्मविश्वास को बढ़ने के अतिरिक्त उत्साह एवं स्फूर्ति को बनाये रखती है।
नवरात्र शक्ति पूजा
नवरात्र स्थापना के समय प्रथम दिन माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप भगवती शैलपुत्री की आराधना की जाती है। पर्वतराज हिमालय के वह पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारन इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। वृषभ स्तिथ इस माँ भवानी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाये हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। श्रद्धालु भौतिक एवं आध्यात्मिक समस्त मनोकामनाओ के पूर्ति के लिए शैलपुत्री रूप की साधना की जाती है। द्वितीय दिवस के दिन भगवती ब्रहचारिणी की उपासना की जाती है। ब्रह्मचारिणी अर्थात चारिणी तप का आचरण करने वाली। इस देवी का स्वरुप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल सुशोभित रहता है। माँ दुर्गा के दिव्या दर्शन और रोग से मुक्ति करने के लिए भक्त इनके इस रूप की पूजा करते है। तृतीया दिवस के दिन माँ दुर्गा की तीसरी शक्ति चंद्रघंटा का पूजन किया जाता है। नवरात्र में तृतीया तिथि को इन्ही के विग्रह का पूजन किया जाता है। भगवती का यह स्वरुप परम कल्याणकारी और शांतिदायक है। इस रूप में भगवती की काँटी स्वर्ण रश्मियों सदृश्य होती है। और मस्तक पर घंटे के आकर का अर्धचंद्र सुशोभित होता है। इस स्वरुप का पूजन कर भक्त पाप ताप से मुक्ति, सभी प्रकार की बाधाओं पर विजय पते है। चतुर्थ दिवस भगवती कूष्मांडा के स्वरूप का पूजन किया जाता है। यह भगवती सृष्टि की आदि स्वरूप आदि शक्ति है। इनके 7 हाथो में क्रमश कमंडल धनुष बाण, कमल, अमृतकलश, चक्र, गदा तरह आठवे हाथ में रिद्धि-सीधी प्रदाता जयमाला है। यही देवी सुख सौभाग्य एवं ऐश्वर्या प्रदायनी है। अपनी मंद, हलकीम हंसी, द्वारा ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारन यह कुष्मांडा देवी कहलाती है। श्रद्धालु इस स्वरूप को पूजन कर मनोरथ पूर्ण करते है। पंचन दिवस दुर्गा जी के पांचवे स्वरुप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। भगवती के इस विग्रह में भगवन स्कन्द जी बाल रूप में इनकी गोद में बैठे होते है। इस रूप में माँ की ४ भुजाये है। भगवती के इस रूप के पूजन से गृहस्थ जीवन सुखी होता है। और पारिवारिक कलह का शमन होता है। माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की , इस कारन यह कात्यायनी कहलाती है। माँ भगवती का यह रूप भवानी रौद्र रूपा है। इन्ही भगवती ने महिषासुर का वध किया था। शत्रु पीड़ा से मुक्ति के माँ सुविख्यात है। भक्त शत्रु भय के दमन एवं कल्याण के लिए माँ के इस रूप की आराधना करते है। माँ दुर्गा जी सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जनि जाती है। त्रिनेत्र धारिणी इस भगवती का रंग एकदम काला है सर के बाल बिखरे हुए है। गले में विधुत से चमकने वाली माला है। भगवती के चार हाथ है। दाहिनी और के हाथ अभय एवं वर मुद्रा में है। जबकी बायीं और के एक हाथ में लोग कांटा और दूसरे हाथ में कटार है। नवरात्र की सप्तमी को माँ की आराधना कर भक्त अकाल मृत्यु के भय से छुटकारा पता है। व्यापर वाणिज्य में प्रगति के लिए कालरात्रि साधना लाभप्रद मानी जाती है। अष्टम दिवस महागौरी आराधना स्वरूप में जानी जाती है। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इन देवी के वस्त्र एवं आभूषण श्वेत। है इनकी चार भुजाएं है। इनका वहां वृषभ है इसके ऊपर के दाहिने था में अभय मुद्रा दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाये था है और नीचे वाले बाये हाथ में वर मुद्रा है। नवरात्र में अष्टमी के दिन देवी महागौरी की आराधना कर युवतिया श्रेष्ठ वर की कामना और पुरुष शुशील सौम्य पत्नी लिए करते है। नवम दिवस के दिन माँ दुर्गा जी शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सीढ़ियों को देने वाली है। मारकंडे पुराण के अनुसार एनिमा, महिमा, गरिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, और वशित्व ये आठ प्रकार की सीढिया होती है। साधक भगवती के इस स्वरूप की अर्चना कर सांस्कृतिक सुखो को भोग करते है। मोक्ष की प्राप्ति है। यह पर लौकिक कामनाओ की प्रदात्री है। पुराणों के अनुसार इस भगवती स्वरूप की ड्रिप से घ भगवन शिवशंकर ने समस्त सीढ़ियों को प्राप्त किया था.
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