January 2020 Imp 100 MCQ विथ imp fact
Pratiyogita Darpan January 2020 Imp 100 MCQ || प्रतियोगिता दर्पण जनवरी 2020 Imp 100 MCQ
नमस्कार दोस्तों
इस विडियो में आपके लिए प्रतियोगिता दर्पण जनवरी 2020 के महवपूर्ण 100 mcq लेकर आए हैं जो आपके आने वाले कम्पटीशन में सीधे पूछे जा सकते है.
इस विडियो को देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें
इस विडियो का pdf डाउनलोड करने की लिए इस पर क्लिक करें
तनोट माता का भव्य मेला
तनोट माता के दर्शन वैसे तो वर्ष भर किया जा सकते है। पर सबसे विशेष दिन नवरात्रो के दिन है। इन दिनों में तनोट माता के दर्शन कर लोग अपनी मनोकामनाएं मांगते है। साथ ही मनोकामनाए पूर्ण होने पर नवरात्रो के दिनों में ही श्रद्धानुसार छत्र चढ़ाया जाता है। तनोट माता की पैदल यटगरा का दृश्य बड़ा ही मनमोहक होता है। मरुस्थल को कटती हुई सड़क पर नवरात्रो के दिनों में चारो और भक्तो की कतारें लगी रहती है। महिलाएं पुरुष बाल बचे वृद्ध सभी को पैदल यात्रा करते हुए देखा जा सकता है। यहाँ के लोगो का मानना है की पैदल यात्रा के दौरान उन्हें किरी प्रकार का कोई कष्ट नहीं होता है। बल्कि तनोट माता के दर्शन करने पर उन्हें असीम आनंद प्राप्त होता है. तथा सभी प्रकार के कष्ट स्वतः ही समाप्त हो जाते है। स्थानीय स्वयंसेवी संगठनों एवं संस्था द्वारा भी तनोट माता की पैदल यात्रा करने वाले भक्तो के लिए जल भूजल तथा चिकित्सा की समुचित व्यवथा की जाती है। जैसलमेर से तनोट जाने वाले सड़क मार्ग पर नवरात्रो में जय माता जी जोर से बोलो तनोटराय जी के जयकारों में जय माता जी जोर से बोलो जय तनोटराय जी के साथ भक्तों द्वारा भजन गीत तथा नृत्य करते हुए आनंद से सरोबार होते हुए देखा जा सकता है। श्रद्धालु भक्तो द्वारा पुरे नवरात्रो में निराहार रहकर व्रत किया जाता है। जो आत्म शक्ति का परिचायक है। दर्शनार्थ हेतु मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, चेन्नई के आलावा सम्पूर्ण भारत से यात्री आते है। पैदल यात्रा के समय नंगे पैर यात्रा करने पर भक्तो को किसी प्रकार का भी कष्ट नहीं होता है नहीं होता हैए. बल्कि तनोट माता की कृपा से उनके हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। तनोट माता के नवरात्रो में सुबह एवं संध्या के समय आरती एवं भजनु की ध्वनि से सम्पूर्ण थार मरुस्थल सुमधुर मंदिर की घंटिया, मंझीरो, वीणा की लयबद्ध आवाज से गूंज उठता है। निर्जन मरुस्थल नवरात्रो के समय पूरा खुशहाल मजार आता है। क्यूंकि इन दिनों में यात्रियों के आवागमन से जैसलमेर से तनोट तक सड़क मार्ग कतारबद्ध श्र्धलुओ भक्तो की मंडली से व्यस्त हो जाता है। राजस्थान की मरुभूमि में अनेक संतो महापुरुषों देवी देवताओ ने कल्याण हेतु अवतरण लिया है। जिनमे से तनोट माता का प्रमुख स्थान है। जैसलमेर में ट्रिकलो के चलते अत्यंत दयनीय स्थित थी। लोग रोजगार के लिए सिंध प्रदेश में जाते थे। व्यापर वाणिज्य के लिए जाने वाले करवा पर हूँ आक्रमण कर लूट खसोट करके बहुत तंग किया करते है। इसके आलावा सीमा पार से मुस्लिम आक्रांताओ के भय से मरुप्रदेश का मरुष्ठल में देवी माता के रूप में अवतरित होना एक स्वर्णिम अध्याय था। तनोट माता ने अपने अलौकिक प्रभाव ो शक्ति से सम्पूर्ण जैसलमेर में सुशासन एवं शांति की स्थापन करवाई यहाँ के लोगजीवन में तनोट माता के प्रति श्रद्धा एवं भक्तिभाव का संचार हुआ।
भारत पाक की पश्चिमी सीमा पर स्थित तनोट माता मंदिर १९६५ व् १९७१ के भारत पाक युद्ध का शाक्षी रहा है। इन युद्धों में सीमा क्षेत्र में रहने वाले सैनिको की रक्षा करने के कारन इन्हे सैनिको के देवी कहते है। सीमा प्रत्येक सैनिक दे मन में इस देवी माता जी के प्रति अटूट आस्था । आठवीं-नवी शताब्दी में मंद हूँ आक्रमणकारियों से भयभीत था। हूँ आक्रांताओं बड़ी ही निर्दयी और क्रूर स्वभाव के थे। यह मनुष्यो को सर काटकर उसका झूला लगा देते थे। ग्रामीण बस्तियों को जला देते थे। पशुओ को खा जाते थे। इसके आलावा इस्लामी आक्रमणों के प्रभाव से हिन्दू धर्म एवं संस्कृति का पतन हो गया था। ऐसे विकट परिस्तिथि में आवड जी माता तनोट माता ने पृथ्वी पर देवी के रूप में जन्म लेकर मनुष्य जाती एवं देश को अमानवीय अत्याचारों से मुक्ति दिलाई हिन्दू मुसिम सांस्कृतिक सद्भाव तथा लोगो में धर्म के प्रति आस्था एवं विश्वास की भावना जागृत हुई। तनोट माता जी ने हिन्दू धर्म में गेली धार्मिक अराजकता तथा छुआछूत की भावना उन्मूलन किया जिसके परिणामस्वरूप सभी जातियों में धार्मिक एकता एवं सध्भावन का विकास हुआ। आवड जी माता के बारे में मान्यता है की इन्होने ५२ राक्षसों को मारा था। जिनमे तेमड़ा , घंटियों , बिन्झो, चालकों प्रमुख थे. हुनो को मरने दस कारण यह जैसलमेर क्षेत्र में तेमडेराय, घंटियालीराय, बिंझोराय नाम से प्रसिद्ध हुई तथा इन्ही नामो से इनका पूजन किया जाता है। इस प्रकार आवड जी माता ने प्रजा को भय से मुक्त कर संपूर्ण मंद प्रदेश में शांति की स्थापना की। तनोट माता केक अलोकीस एवं चमत्कारक कार्यो से जैसलमेर के जनमानस में उनके प्रति अटूट श्रद्धा एवं भक्ति भावना का संचार हुआ है। इसी कारन यह देवी थार की वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध हुई है। इनकी भक्तिमय धरा का प्रवाह जैसलमेर क्षेत्र में ही नहीं वरन हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, हजरत, सिंध, बलूचिस्तान क्षेत्रों में भी अविरण रूप में बह रहा है। देशी पर्यटक के साथ विदेशी पर्यटक के लिए तनोट माता श्रद्धा का केंद्र है। तनोट माता जी ने सामाजिक, सांस्कृतिक, एवं धार्मिक क्षेत्र दस आलावा साहित्य के शेता में भी अपनी अमूल्य छाप छोड़ी है। विशेस्कर चारण साहित्य के क्षेत्र में राजस्थानी साहित्यकारों ने माता जी तनोट की भक्तिमय यात्रा का वर्णन अपनी साहित्य रचनाओं में किया है। भजन गीत आरती एवं लोककथाओं का वर्णन साहित्कारों ने तनोट माता की शक्ति एवं भक्ति की भकवना से प्रेरित होकर किया है। राजस्थानी सचित्र में तनोट माता जी के भजनो एवं गीतों में भावो की विविधता भाषा की सस्ता एवं महत्ता का विशेष महत्व रहा है। मरुप्रदेश के लोग कलाकारों में अपने सुरो एवं लोकधुनो के मध्यान से तनोट शक्ति का परचम सम्पूर्ण विश्व में फैले है। तनोट गांव के समीपथ ग्रामीण अंचलो के लोगी ने अपने भजनो के माध्यम की श्रद्धा एवं शक्ति का सूंदर चिरान किया है। तनोट माता की कथाय लोकगीतों के माध्यम से गयी जाती है। तनोट माता एवं जैसलमेर की अन्य लोग देवियो के अवतरण से हिन्दू धारण में शक्ति संप्रदाय का व्यापक प्रचार प्रसार हुआ है. जैसलमेर में भाटी वंच की स्थापना के साथ तनोट माता का आशीर्वाद जुड़ा हुआ है। जसके फलस्वरूप भाटी राजवंश ने अपना सुदृढ़ राज्य मरुप्रदेश में स्थपित किए।
जैसलमेर के महारावलों एवं शासको ने पूर्ण विश्वास रखकर देवियो के मंदिरो का निर्माण करवाया तथा उनमे उनकी पूजा पथ का प्रबंध किया। तनोट माता एवं अन्य लोक देवियों के अवतरण का प्रभाव सांस्कृतिक क्षेत्र में भी परिलक्षित होता है। जैसलमेर क्षेत्र में हर गली एवं गाओं में लोक देवियो के भव्य मंदिर है। इनका पूजन भिन्न भिन्न समाज के लोग अपनी आस्था के अनुसार करते है। तनोट माता ने अपनी दिव्या सक्तियो से मानव जाती एवं पशुओ का नहीं कल्याण किया जिससे हिन्दू धर्म एवं संस्कृति से में नवीन आयन स्थापित हुए। सम्पूर्ण विश्व में अपनी देवीय शक्ति एवं चमत्कारों के कारन सम्पूर्ण विश्व में सैनिको के दिवि शक्ति की देवी थार की वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध हुई है। लोक देवियो से सम्बंधित शक्ति काव्य विविध रूपों में अभिव्यक्त हुआ है। देवी माता जी की स्तुति चार्ज कहलाती है। चार्ज नो प्रकार की होती है। १ सिँगाउ - शांति के समय की जाने वाली स्टोरी। २ चांडाउ - विपत्ति में की जाने वाली स्तुति है। ये चिरजाए देवी के रात्रि जागरणों में महिलाओ द्वारा लोकगीतों की तरह गयी जाती है। वाध्ययंत्रो के सहारे इन्हे गया भी जाता है। तथा कविता की तरह पढ़ा भी जाता है. चिरजा के माध्यम से देवी माता के रूप, गन, उनकी महिमा का बखान किया जाता है। चमत्कारिक कार्यो का मलख भी होता है। मांगलिक अवसरों त्योहारों उत्सवी पर महिलाओ तथा मांगणियार द्वारा इनका गायन किया जाता है। जैसलमेर के लोगजीवन में जनश्रुति के रूप में आवड जी को जून जाल री धन्यानि भी कहा जाता है। राव तनु जी एवं उनकी महारानी सोलंकिनी आवड माता के अनन्य भक्त थे। ऐसा कहते है, की उनके रथवाहक के हाथ में बैलो को हांकने के लिए जाल के वृक्ष की एक लकड़ी थी। आवड जी के दर्शन करने जाते समय रथवान ने वह लकड़ी एक टीले में गाड़ दी थी। राव तनु अपनी रानी सोलंकिनी के साथ दर्शन करके लोटे तो लोग कहती है की वह जाल की सुखी लकड़ी हरी भरी टहनी में बदल गयी और वर्तमान में एक जाल का वृक्ष के रूप में विध्यमान है। रानी सोलंकिनी ने आवड जी माता की जो चिरजा वंदना गयी है। वह आज भी लोक जीवन में गयी जाती है।
Thanks sir
ReplyDeleteYou are great sir
ReplyDelete