शिखर सम्मलेन 2019 (आयोजन स्थल ) और 2020 में कहाँ आयोजित होंगे
शिखर सम्मलेन 2019 (आयोजन स्थल ) और 2020 में कहाँ आयोजित होंगे
नमस्कार दोस्तो
इस वीडियो में आपके लिए वर्ष 2019 के सभी महत्वपूर्ण शिखर सम्मलेन का वीडियो लेकर आये है| प्रतियोगी परीक्षाओं के दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक जिस पर कम से कम एक प्रश्न आप अपने एग्जाम में जरूर देखते हैं
इस वीडियो को देखने के लिए इस लिंक पर click करें
इस पीडीऍफ़ को डाउनलोड करने की लिए इस पर क्लिक करें
इस वीडियो में हमने निम्न शिकार सम्मेलनों को लिया है
1 . ब्रिक्स का 11वां शिखर सम्मलेन
2 . जी7 का 45 वां शिखर सम्मलेन
3 . जी 20 का 14 वां शिखर सम्मलेन
इसके साथ इन सभी सम्मेलनों का आयोजन २०२० में कहा पर किया जायेगा इन सभी प्रश्न को इस वीडियो में शामिल किया गया है
16 दिसंबर को वीर सैनिको की स्मृति में विजय दिवस मनाया जाता है
तनोट क्षेत्र के कमांडर मेजर जय सिंह थे, उनके नेतृतव में भारतीय सेना ने सेना को सीमा से बहार खदेड़ था. इनमे युद्ध विद्या की उत्कृष्ट रणनीति विद्यमान थी। युद्धभूमि में मेजर जय सिंह तन जाये पर तनोट न जाये के युध्द घोष के साथ सैनिको में आत्मविश्वास भरते थे। इसी प्रकार मेजर पूरणसिंह भू निडर एवं पराक्रमी सैनिक थे, उनकी सेना में उपस्तिथि मात्र से सत्रु सेना भयभीत हो उठती थी। भारतीय सैनिको में आत्मबल व् वीरता की भावना स्वतः जागृत हो जाती थी। 1965 दस भारत पाक के युद्ध बुरी तरह परास्त हो चुकी थी. उसी समय तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने सेना में आत्मविश्वास लेन के लिए उच्च सैन्य अधिकारियो से गूढ़ मंत्रणा कर राजस्थान की पश्चिमी सीमा पर फिर से आक्रमण करने की सोची 4 दिसंबर को रात्रि में लगभग 11 बजे सब लोग अपने घरों में सो रहे थे। तभू आकाश में तेज गर्जना के साथ शत्रु ने चीन निर्मित टेंको एवं वायुसेना से आकरकमण कर दिया। भारतीय सेना में पंजाब रेजिमेंट की कंपनी एवं सीमा सुरक्षा बल कंपनी ने मिलकर माताजी से आषीर्वाद से शत्रुओ के सेकड़ो टैंक गाड़ियों को राजस्थान में कब्रिस्तान अबना दिया था। इसलिए लोंगेवाला क्षेत्र को पाकिस्तान टैंको का कब्रिस्तान कहा जाता है। इस युद्ध में तनोट माता के ही चमत्कार दिखाए उससे भारतीय सैनिको में उनके प्रति अगाध श्रद्धा बन गयी थी। लोंगेवाला विजय के उपरांत तनोट माता के चमत्कार को साक्ष्य के रूप में राजस्थान सर्कार ने माता तनोट के द्वार पर विजय स्तम्भ उत्कीर्ण करवाया है। जहा हर वर्ष 16 दिसम्बर को वीर सैनिको की स्मृति में विजय उत्सव मनाया जाता है।
भारत पाक 1971 केक युद्ध के समय जैसलमेर रामगढ गाओं पर पाक शत्रु सेना ने 4 वायु यानो के द्वारा रात को बम बरसाए लेकिन यहाँ तनोटराय माता जी की असीम कृपा से कोई बड़ी जनहानि नहीं हुई। न ही मवेशियों को चोट आयी। संपूर्ण गाओं नष्ट होने से बच गया तह। इस क्षेत्र के लोगो में इस युद्ध के समय एक किवदंती प्रचलित है। जिसके अनुसार जब लोंगेवाला पर शत्रु सेना ने बम गर्जना रामगढ गाओं तक पहुंच गयी थी। सब लोग भयभीत होकर अपनी सुरक्षा करने में लग गए थे। उसी समय गाओं में सिद्धहस्त बाबा ने कहा की सब लोग अपने अपने घरो में बहार मेहँदी के हाथ से थापे लगाए क्यूंकि माताजी ने डाले गए बमो को अपने हाथ में पकड़ लिया है। उनके हाथो में शीतलता मिलेगी। ऐसा कहने से सभी गाओं के लोगो ने ऐसा किया लेकिंग एक परिवार ने ऐसा नहीं किया तो युद्ध के समय शत्रु सेना द्वारा बम डालने से उस परिवार के दो लोग मर गए थे। जिसने मेहँदी का थापा अपने घर के बहार नहीं लगाया था। इस प्रकार इस क्षेत्र के लोगो में तनोट माता के प्रति अगाध श्रद्धा एवं भक्ति भावना है। आवड माता जी की माड़ प्रदेश में पवन यात्रा और जनकल्याण की चमत्कारी घटनाओ के साथ जैसलमेर में सात मंदिरो का निर्माण हुआ जिससे लोगो की आस्था देवी शक्ति के प्रति बढ़ती गई।
शक्तिपीठों के रूप में उपासना
1 - कालेडूंगरराय का मंदिर
जैसलमेर से 25 किमी दूर हड्डा गाओं के पास उत्तर पूर्व में स्तिथ काले रैंक की पहाड़ी पर बना हुआ मंदिर है। नान गढ़ सिंध से वापस आते समय आवड जी ने कुछ दिन डूंगर पर निवास किया था। इस कारन आवड जी कालेडूंगरेचिया नाम से प्रसिद्ध हुई। वह मंदिर जैसलमेर क्षेत्र की सभी जातियों का आराध्य स्थल रहा है। वर्ष भर में यहाँ 2 बार माघ व् भाद्रपद तथा नवरात्रो में मेले का आयोजन। आवड जी ने सिंध प्रदेश से लौटते समय आयता गाओं के लोगो ने सर्वप्रथम दर्शन किया थे। जो काळा डूंगरराय के समीप स्तिथ है। लोद्रवा का परमार राजा जसभान आवड जी के चमत्कारों की चर्चा सुन कर इस स्थान पर दर्शन करने आया लेकिन देवी जी ने उन्हें नहीं दिए थे। महारावल जवाहर सिंह ने यहाँ मंदिर निर्माण करवाया था. आराध्य स्थल पक्के सड़क से जुड़ा है। मंदिर में नीचे से ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां बानी हुई है। यही पर धर्मशाला एवं कुंड बने हुए है।
2 - भादरियाराय का मंदिर
जैसलमेर जोधपुर मार्ग पर धोलिया गाओं से 9 किमी में यह मंदिर समतल पहाड़ कि छोटी पर बना हुआ है। यहाँ पर भाद्रपद माघ व् नवरात्रों में माता स्वांगिया जी का मेला लगता है। तनुराव जी तथा उनकी महारानी सोलंकिनी ने यहाँ बोर के टेले पर सबसे पहले आवड जी के दर्शन किये थे। उन्हें लकड़ी की सहंगे पर बिठाकर उनकी बहनो एवं भाई महरुख़ क पूजन चंवर ढुला कर किया था. आवड जी माता ने आशीर्वाद देते हुए कहा की मांड प्रदेश में तुम्हारे वंशजो की स्थयी राजधानी स्थापित होगी। वह पर तुम्हारा राज्य अचल रहेगा लड़की के साहांगे पर बैठकर पूजने के कारन यहाँ आवड जी को सांगिया माता की नाम से जाना जाता है। ऐसा प्रसिद्ध है की बहादुरिया भाटी के अनुरोध पर स्वांगिया देवी अपनी बहनो के साथ इस बोर के टेले पर आयी थी। इसलिए बहादुरिया के नाम से इस स्थान का नाम भादरिया पड़ा। इस मंदिर के के पुजारी शाक द्वीपीय ब्राह्मण है। पहले पूजा जैसलमेर राजघराने के देखरेख में होती थी। वतर्मान में जगदम्बा सेवा समिति भादरिया की देखरेख में होती है। यहाँ अखंड ज्योति प्रज्वलित रहती है। इस स्थान पर तणुराव की पत्नी ने सुखी जाल की लकड़ी गाड़ी थी। जो सुबह होते ही हरी हो गयी थी। जो वर्तमान में विशाल जाल के वृक्ष के रूप में विधमान है। यह स्थान जैसलमेर के शासको एवं जनता श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।
भादरिया जी का अनूठा पुस्तकालय
भादरिया स्थान पर बने स्वांगिया जी के मंदिर परिसर में एशिया की सबसे बड़ी भूमिगत पुस्तकालय बना हुआ है। लगभग 35 वर्ष पूर्व श्री हरिवंश सिंह निर्मल पंजाब से यहाँ आये। इन्होने गुफा में रहकर कठोर साधना एवं तप द्वारा लोगों के मन में शक्ति की अलख जागृत की। श्री जगदम्बा सेवा समिति एवं उनके विर्देशन में घ विश्वविद्याला के शोधकर्ताओं एवं लोगो के ज्ञान की जिज्ञासा को पूर्ण करने के लिए एक घ स्थान पर विश्व के समस्त पुस्तकालयों की पुस्तकें को वितरित कर विशन आधुनिक सुविधाओं से युक्त भूमिगत पुस्तकालय का निर्माण करवाया गया. श्री हरवंशसिंह निर्मल ने पुस्तकी के माध्यम से ज्ञान को फ़ैलाने के लिए बीकानेर जैसलमेर जोधपुर संभागो के ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर पुस्तकों को बनता तथा भादरियाराय के पास के गाओ में गौ रक्षा एवं वन्य सामाजिक बुराइयों को दूर करने के उपदेश दिए। श्री भादरिया राय मंदिर के आस पास का क्षेत्र गोचर एवं ओरण के लिए संरक्षित किया।
जगदम्बा समिति के निर्देशन में भादरिया पुस्तकालय में करीब 562 सुसज्जित अलमारियों में 16 हजार फ़ीट लम्बी रैक निर्मित की गयी है। पुस्तकालय में अध्यन के लिए एक विशाल हॉल का निर्माण किया गया है। जहाँ 4 हजार लोग एक साथ बैठ सकते है। इसके साहित्य की माइक्रो सीडी बनाए एवं ख़राब होने ले बचने के लिए सुविधायुजक्त भवनों का निर्माण करवाया गया है। थार के मरुस्थल क्षेत्र में भादरिया जी के इस दुर्लभ अनूठे पुस्तक आलय को देखकर दर्शनार्थी चकित रह जाते है वर्तमान में पुस्तकालय में सुसज्जित पुस्तकों को जब कोई श्रद्धालु आते है तो दिखाया जाता है। दिवंगत संत भादरिया महाराज के सपनो को साकार करने के लिए श्री जगदम्बा समिति द्वारा पुस्तकालय का कम्प्यूटीकरण कार्य करवाया जा रहा है। अतिशिग्रह इसी अनूठे पुस्तकालय में रखे ज्ञान भंडार को नियमित रूप से आम लोगो के लिए खोल दिया जायेगा। जो यहाँ पर आने वाले शोधार्थियों एवं पुस्तक प्रेमियों के लिए वरदान साबित होगा।
धन्यवाद
No comments: