फरवरी 2020 सार-संग्रह || Pratiyogita Darpan February 2020 Saar Sangrah One Liner
प्रतियोगिता दर्पण फरवरी 2020 सार-संग्रह || Pratiyogita Darpan February 2020 Saar Sangrah One Liner
नमस्कार दोस्तोंइस वीडियो में हम आपके लिए प्रतियोगिता दर्पण और सामान्य ज्ञान दर्पण के के फरवरी 2020 के संस्करण का सार संग्रह लेकर आये है
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श्री तेमडेराय मंदिर
यह मंदिर जैसलमेर से २६ किमी दूर गरलाउने नामक पहाड़ पर स्थित है। इस पहाड़ की तलहटी में एक छोटा सा तालाब है। उस पर एक कुंड बना हुआ है। ऐसे मान्यता है की आवड जी ने यहाँ निवास करने वाले तेमडे नामक राक्षस का वध किया था। इस कारण लोक जगत में यह तेमडेराय के नाम से पूजी जाती है। यहाँ पर वर्ष भर में दो बड़े मेले लगते है। भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को व् चतुर्दशी के दिन यहाँ दर्शनाभिलाषियो का मेला लग्र है। यह न केवल भाटी शासक वरन ब्राह्मण, ओसवाल और मेघवाल जाती के लोगो का भी आस्था का स्थल है। ऐसे मान्यता है की यहाँ भक्तों को देवी माता के दर्शन छछून्दरी के रूप में होते है इस मंदिर के पुजारी भोपा गाओं के गोगलिया भाटी होते है।
घंटियाली माता का मंदिर
माता जी की प्राचीन कथा
बहुत समय पहले मुस्लिम लोगो ने बॉर्डर के पास वाले गाओं पर काफी अत्याचार करके सम्पूर्ण गाओं के ख़त्म कर दिया, उस गाओं में केवल एक गर्भवती महिला बची थी. जो की अपने गाओं को छोड़कर अपने मायके चली गयी। कुछ समय पश्चात उसने एक लड़के को जन्म दिया। लड़के दस बड़े होने पर उसके साथिओ ने उसे अपने पिताजी का नाम पूछा जो की उसे पता नहीं था। घर आकर उसने अपने माँ से यह पूछा की मेरे पिताजी इस समय कहाँ पर है। यह बात सुनकर उसके माँ रोने लगी , उसने बताया की तुम्हारे पिता एवं गवां के सभी लोगो को कुछ मुस्लिम आक्रांताओ ने मार दिया था। जब रम मेरे गर्भ में थे। इस बार से दुखी होकर उसके मन में अपने परिवार पर गए अत्याचार के प्रति बदला लेने की भवन जगी। उसने बड़ा होने के बाद अपनी माताजी को बिना बताये एक तलवार लेकर चल पड़ा। उस समय वह घंटियाली तक आया जिस समय घंटियाली में एक छोटा समंदिर था। उसको देखकर भटियाली रे माता ने एक बची का रूप लेकर उस लड़के के पास लोटा भर जल लेकर गयी। बची को देख कर बड़ा आश्चर्य \हुआ की लड़के ने बची से पूछा की यहाँ पर चिड़िया भी नजर नहीं आती है। तुम यहाँ कहाँ से आयी हो। तब बची बोली पहले आप पानी पीओ बाद में बताउंगी लड़के को पानी पीने के बाद काफी शक्ति मिली क्योंकि वह बहुत प्यासा था। तब बची ने कहा की आज जिस कार्य के लिए आये हो वह पूर्ण होगा। इस बार की सुनकर लड़के ने कहा की तुमको क्या पता की किस कार्य के लिए हम जा रहे है। तब बची ने कहा मुझे तो पुरे जगत के बारे में पता है। इस बात को सुनकर लड़का बच्ची के चरणों में लेट गया। फिर माँ ने कहा जाओ तुम्हारा कार्य पूर्ण हो जायेगा। उसके बाद लड़के ने माँ से कहा की माँ मुझे इसका उपाय बताओ किस जगह जाकर किस प्रकार बदला लूंगा। माँ ने कागा बेटे मेरी कृपा से रुमको ऐसा मौका मिलेगा। लेकिन तुम सिर्फ एक आदमी को मर देना उसके बाद बाकि लोग अपने आप लड़कर समाप्त जायेंगे। लड़के ने कहा की माँ यदि ऐसा हुआ तो दुबारा में यहाँ आकर अपने शीश बलिदान करूँगा। माँ ने कहा बेटे में माँ होकर अपनी संतान की बलि कैसे ले सकती हु। उसके बाद वह लड़का प्रसन होकर अपने कार्य को पूरा करने के लिए चल पड़ा. लड़का एक गाओं में पहुंचा जहा पर एक मुस्लिमो की बारात आ रही थी। लड़के ने आकर पिछले वाले बाराती को मारकर वह से भाग निकला। तब बारातियो ने सोचा की गाओं वालो ने घ उस बाराती को मार दिया है। उसके बाद गोंवालो में आपस में झगड़ा हो गया। सभी आपस में लड़कर मर गए। इस दृश्य को देखकर उस लड़के का मन काफी प्रसन्न हुआ की माँ ने जो बोलै वो सत्य हुआ। फिर वह दुबारा घंटियाली माँ के मंदिर में आया तो माँ बच्ची के रूप में वह नहीं थी। वह लड़का यह देख कर काफी निराश हुआ और माँ माँ छिलने लगा। मैंने अपने शीश देने का वचन दिया था तथा उसके पश्चात अपने सर की काटने के लिए तलवार उठायी तो मंदिर के पास से आवाज आयी की ऐसा मत करो। फिर उसने चारो तरग देखा की आवाज कहाँ से आयी रो कुछ दिखाई नहीं दिया। तो वह अपना शीश काटने लगा तो फिर दुबारा वही आवाज आयी। फिर तीसरी बार शीश काटने लगा तो माँ ने आकर उसका हाथ पकड़ लिया और बोली की यदि तुम ख़त्म ही जाओगे तो मुझे कोण पूजेगा? रम प्रचार करो में एहि पर हु।
घंटियाली माँ का मंदिर
जैसलमेर से तनोट जाने वाले मार्ग पर तनोट से पहले 7 किमी दुरी पर दक्षिण पूर्व में स्तिथ है। आवड जी ने तनोट से लौटते समय यहाँ घंटिया नामक राक्षस का वध किया था। इस कारन इसे घंटियाली माता के नाम से पूजा जाता है। घंटियाली देवी के विषय में एक किवदंती भी है जो श्री दानमल सेवग मथुरिया ने सुनाई थी जिसका विवरण एन. के. शर्मा ने ने अपनी पुस्तक जैसलमेर ढ लोगदेवियो में इस प्रकार दिया है। एक बार वीरधवल नमक शाकद्वीपीय ब्राह्मण जैसलमेर देवी की पूजा करता था। जैसलमेर के महारावल ने नवरात्री की पूजा हेतु अपने सेवक के साथ पूजा का सामान भेजा। सेवक ने वह सामान वीरधवल को दिया। वीरधवल ने पूजा सामग्री में आये प्रसाद को स्वयं खा लिया तथा इत्र को भी लगा लिया। सेवड़ को बड़ा अचम्भा हुआ उसने इस घटना की पूरी बात महारावल की बताई, महारावल बड़ा क्रोधित हुआ। उसने राजदरबार में वीरधवल की बुलाकर पूजन सामग्री के बारे में पूछा। वीरधवल ने हाथ जोड़कर कहा खम्मा अन्नदाता आप किसी अन्य व्यक्ति की भेजकर पता करवा ले। महारावल ने दूसरे व्यक्ति की भेजा, उसने जाकर देखा तो ज्योति जल रही थी। इत्र की शीशी वह राखी हुई थी। और प्रसाद भी चढ़ा हुआ था , दूसरे सेवक ने कहा की खम्मा अन्नदाता सारा सामान देवी दे चढ़ा हुआ है। पहले वाले सेवक ने महारावल से कहा की यह अवश्य कोई जादूगर है तो महारावल ने वीरधवल से कहा की तुम कोई चमत्कार दिखाओ। वीरधवल ने कहा आप दर जाओगे। महारावल ने कहा कोई बात नहीं, में तुम्हारा चमत्कार देखना चाहता हूँ वीरधवल ने महारावल से कहा की अगर आपको दर लगे तो आप कहना "हुतो जेड़ो हुयजो " तथा एक मिनट में आंके बंद करके खोलने को कहा तो सामने एक सिंह खड़ा था। महारावल ने डरते हुए कहा हुतो जेड़ो हुयजो तो वीरधवल अपने वास्तविक रूप में आ गया। महारावल ने सभी कर्मचारियों को इस घटना का वृतांत सुनाया। करमचरियो ने कहा की यह निश्चित रूप से कोई जादूगर है और ऐसा व्यक्ति कोई भी अनिष्ट कर सकता है। यह व्यक्ति अपने नहीं है, महारावल ने कर्मचारियों ढ बातो में आकर वीरधवल की जैसलमेर से निष्काशन की आज्ञा दी। वीरधवल आदेश प्राप्त कर देवी के पास गया तथा देवी की मूर्ति के सामने खड़ा होकर कहने लगा माँ अब यहाँ रहने से कोई लाभ नहीं है। तब देवी माता जी ने कहा में भी तुम्हारे साथ चलती हु। मगर जिस स्थान पर तुम मेरी प्रतिमा को जिस स्थान पर नीचे रख डोगे उस स्थान से आगे नहीं चलूंगी। वीरधवल ने कहा की ठीक है, वीरधवल देवी की प्रतिमा लेकर सिंध के मार्ग पर चल पड़ा। वहां से तनोट थोड़ी ही दूर रह गया था। वह देवी के वचन को भूल गया। देवी की प्रतिमा को नीचे रखकर अपनी दुपी में माने पिने लगा। पानी पीकर थोड़ी देर विश्राम कर वह मूर्ति उठानी लगा तो उसका वजन बढ़ गया। वह कहने लगा यह क्या हो गया माता। देवी माता जी ने कहा की तुम अपना वचन भूल गए हो। मैंने तुम्हे कहा था जिस स्थान पर तुम मेरी मूर्ति रख दोगे वह से आगे नहीं चलूंगी। वीरधवल ने कहा मातेश्वरी यह निर्जन मरुस्थल यहाँ न धुप है न छाया, न गाओं है ना ढाणी, मेरा जीविकोपार्जन कैसे होगा। देवी माता जी ने कहा तुम चिंता मत करो। सामने जाल वृक्ष के नीचे खड्डा खोदो वह पानी निकलेगा। तनोट यहाँ से 5 कोस दूर है. यहाँ से सिंध का मार्ग जाता है। यहाँ हजारो मंदिर यात्री आएंगे. जिससे तुम्हारा काम चल जायेगा। माताजी की आज्ञानुसार वीरधवल ने वही रहने का निश्चय किया तथा कहा की माता आप मुझे दर्शन कब दोगे। माता ने कहा किसे समय नवरात्री के दिनों में यहाँ पर तुम्हे शेरों का झुण्ड दिखयी देगा। उसमे जिसके गले में घंटी बंधी हुई होगी वह में होउंगी तुम स्मरण कर लेना। वीरधवल भक्तिभाव से देवी माता की पूजा करता तहा। धीरे धीरे अनेक यात्री आने लगी। इस स्थान पर मीठा पानी उपलब्ध होने से यहाँ सैकड़ों यात्री विश्राम किया करते थे। कई वर्षों बाद एक दिन नवरात्री के दिनों में शेरो का झुण्ड दिखाई पड़ा। ,एक शेरनी के गले में घंटी बंधी देखकर उसे देवी के वचनो का स्मरण हो गया। वीरधवल उसके चरणों में गिर पड़ा। मातेश्वरी ने वीरधवल को साक्षात दर्शन किये और कहा की वह स्थान घंटियाली के नाम से प्रसिद्ध होगा। इस कारन इसे घंटियाली माता के नाम से पूजा जाता है। 1965 में भारत पाक युध के समय शत्रु सेना ने जब यहाँ की मूर्तियों को खंडित किया तो माता के चमत्कारों से शत्रु सेना रास्ता भटक कर समाप्त हो गयी थी। इस घटना के उपरांत यह स्थान सैनिको की श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर के बारे में लोक मान्यता है की तनोट माता जी के दर्शन करने के पहले इनके दर्शन कर लेना अनिवार्य है। नहीं तो तनोट माता की यात्रा अधूरी मानी जाती है।
धन्यवाद
जय माताजी
जय माताजी
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ReplyDeleteLink nahi mila
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