मार्च 2020 के प्रतियोगिता दर्पण एवं सामान्य ज्ञान दर्पण से महत्वपूर्ण 100 MCQ
मार्च 2020 के प्रतियोगिता दर्पण एवं सामान्य ज्ञान दर्पण से महत्वपूर्ण 100 MCQ
नमस्कार दोस्तों
इस वीडियो में हम आपके लिए प्रतियोगिता दर्पण एवं सामान्य ज्ञान दर्पण के सस्करण से अतिमहत्वपूर्ण 100 MCQ का एक शानदार वीडियो लेकर आये हैं जो आपके आने वाली exams बहुत ही सहायक होगा.
इससे पहले के हमारे 2 वीडियो सार संग्रह और व्याख्या सहित मार्च 2020 आप देख चुके होंगे अगर नहीं देखे है तो आप हमारे यूट्यूब चैनल पर जाकर देख सकते है। दोस्तों इस वीडियो में आपके लिए टॉप बहुचयनात्मक प्रश्नो का संग्रह लेकर है..
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इस वीडियो के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
- केंद्रीय बजट 2020-2021 एवं आर्थिक समीक्षा 2019 -2020
- अंतराष्ट्रीय परिदृश्य मार्च 2020
- राष्ट्रीय परिदृश्य 2020 मार्च
- आर्थिक परिदृश्य
- पुरस्कार एवं सम्मान मार्च 2020
- खेल करेंट अफेयर्स मार्च 2020
इन बिन्दुओ के आलावा कुछ अन्य महत्वपूर्ण बिंदु है...
- भारत वन स्तिथि रिपोर्ट 2019
- महिला एवं बच्चों के प्रति अपराध के क़ानूनी प्रावधान
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राजस्थान में शक्ति उपासना का महत्व
मध्य युगीन जीवन भय और युद्ध से आदिक जुड़ा हुआ था जिसके कारन युद्ध में भाग लेने वाले शक्ति को आराध्य देवी मानकर युद्ध में बलि देते है तथा जेमताजी शब्द का आह्वान करते है। शांति के समय देवियो की उपासना हेतु मंदिरो की स्तथापना जिनमे 12 वीं शताब्दी का ओसिया सच्चिका मंदिर आदि देविया शक्ति के प्रतिष्ठित हैं। थार मरुष्ठल में अवस्थित जैसलमेर की मरुभूमि प्राचीन काल से ही धर्म एवं दर्शन का केंद्र। क्षेत्र को आपदाओं एवं विदेशी आक्रमणकारियों ने हमेशा संकट पहुंचा लेकिन फिर भी यहाँ के लोगो में धार्मिक आस्था एवं विश्वास की अटूट परंपरा रही है। इस मरू प्रदेश में अनेक सम्प्रदायों, धर्मो के लोग रहते थे। जिनका धार्मिक जीवन सरल उदार, आडम्बर हीं एवं सद्भावना युक्त था। हिन्दू धर्म के लोग शिव विष्णु गणेश सुया की पूजा करते थे। श्री गणेश गृह प्रवेश के देवता, ज्ञान की देवी सरस्वती , लश्मी को समृद्धि एवं भाग्य की देवी, क्रिया की देवी महाकाली एवं दुर्गा को दुर्भाग्य से बचने वाली देवी दे रूप में जाना जाता है।
तनोट की भौगोलिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
जैसलमेर से 130 किमी दूर स्थित तनोट का इतिहास में विशिष्ठ स्थान है। जैसलमेर दे चंद्र वंशी यादवो ने ड्रामाष कशी, मथुरा, प्रयाग, गजनी, भटनेट तथा दुगम तनोट के रुप में छठी राजधानी को स्थापित किया था। जो निम्नांकित दोहे में वर्णित है।
"मथुरा, काशी, प्राग्वाट, गजनी और भटनेर, डिगम देरावर , लोद्रवा नवो जैसलमेर "
भारत की स्वतंत्रता से पूर्व तनोट व्यापारिक केंद्र एवं अंतर्देशीय व्यापर मार्ग पर अवस्थित होने के कारण प्रशिद्ध था। सिंध, अफगानिस्तान, भावलपुर, मुल्तान, शिकारपुर, हैदराबाद, अमरकोट, खैरपुर, रोहरी, अहमदपुर जाने वाले ऊंटों के व्यापारिक कारवां यही से गुजरते थे, मुल्तान और शिकारपुर से जैसलमेर के मार्ग से गेंहू, चावल, छुआरा, सूखे मेवों का आयत निर्यात किया जाता था। तनोट क्षेत्र की भौगोलिक अवस्थिति विकट थी।
पश्चिमी भारत पाक सीमा पर स्थित तनोट तत्कालीन जैसलमेर के पश्चिमी द्वार का प्रहरी था। लोक प्रचिलित मान्यता थी की तनोट को राजधानी रखकर ही विशाल मरुस्थल के भू भाग पर शासन किया जा सकता था। इसके आलावा तनोट सिंध और राजपुताना क जोड़ने वाला मुख्य केंद्र था। इस मार्ग पर दूर दूर तक जलाभाव था। पेयजल के रूप में गहरे पानी के कुओं को प्रयोग में लिया जाता था, उनका जल अत्यन खरा होने के कारन कृषि कार्य भी नहीं होता था. आवागमन के साधनो की कमी के कारन लोग घोडा , ऊंट तथ, बैलगाड़ी का प्रयोग परिवहन के साधनो दस रूप में किया जाता था। अधिकांश लोग पगडंडियों पर पैदल यात्रा करते थे। मरुस्थल में चलने वाली धूल भरी आँधियो से मार्ग परिवर्तन होने के साथ साथ दिखाई भी नहीं देते थे। इस कारन रात्रि में लोग आकाश में तारा मंडल को देख कर दिशा व् समय का अनुमान लगा देते थे। तनोट के आसपास के क्षेत्र दूर दूर तक लहरदार रेट के धोरे खेजड़ी, आक, जाल , फोग , केर के पेड़ ही दिखाई देते थे। मरुषतां ली इस विकत परिस्थिति के कारन गाओं नगर धार्मिक स्थल दूर दूर स्थित थे। मरुप्रदेश की यात्रा की कठिनाइयों को दर्शाने वाला दोहा आज भी प्रशिद्ध है-
"घोडा कीजे काठ का, पिंड कीजे पाषाण, बख्तर कीजे लोह का , जब देखो जैसाण"
अफगानिस्तान, सिंध , पंजाब, एवं मक्का मदीना जाने वाले हज यात्रियों तथा व्यापारियों का मुख्या मार्ग तनोट से होकर गुजरता था। इस कारन पुरे वर्ष यहाँ यात्रियों का आवागमन लगा रहता था। पाकिस्तान दे बलूचिस्तान प्रान्त में स्थित हिंगलाज माता की यात्रा पर जाने वाले मंदिर यात्री तनोट माता के दर्शन अवश्य करते थे। तनोट की अपनी विशिष्ट ऐतिहासिक महत्ता रही है। जैसलर के महारावल घड़सी की राजगादी पर महारावल मूलराज बैठे मूड्स पुत्र देवराज के पुत्र राव केहर के बैठने के साथ ही तनोट के स्वर्णिम अध्याय की शुरुआत होती है। इनके बारे में ऐसा कहा जाता है की ये देवयोग से जैसलमेर की राजगद्दी पर बैठे , वैशाखी के भगवन भूतेश्वर महादेव की कृपा से उन पर नागराज ने छात्र छाया की थी। महारावल केहर जैसलमेर राज्य दे पुनर्संस्थापक के रूप में प्रसिद्ध हुए श्री से उन्होंने जैसलमेर के समस्त दुर्गो कोटों व् भूमि पर सिंध तक अपना अधिकार किया। राव केहर वीर पराक्रमी शाशक होने के साथ साथ न्यायप्रिय भी थे नूके राजयकाल में संपूर्ण मांढधरा प्रदेश में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत थी। राज्य के परगनो के मुख्यालय को दुर्गो में स्थापित कर वह पर सैनिक छावनियों पर जैसलमेर राजचारणे के भाटी सरदार नियुक्त थे। राव केहर सभी जाती के लोगो दस साथ उचित व्यव्हार एवं न्याय करते थे. इनके राज्य में भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं था. अपराधी किसी भी प्रकार का दुस्सहस करने से डरते थे। शासन काल में प्रजा सुखी एवं सम्पन्न थी।
जैसलमेर का सोनार दुर्ग
महारावल केहर की सैन्य व्यवस्था में दो सुसज्जित सैनिक थे गोला बारूद के भंडार, छोटी व् बड़ी तोपें उनके शाश्त्र गार में शामिल थी। पलीते दर बंदूकों एवं फौलादी तलवारों दस मुन्थों पर सोना चढ़ाया हुआ था। साथ ही सश्त्रो के भंडार विपुल मात्रा में थे। उनकी इस सामरिक महत्ता से आस पास दस राज्य भयभीत रहते थे। इनके राजयकाल में दो शाख की खेती होती थी। सरकारी भूमि पर छठा भाग भोग कर लिया जाता था तथा आयत निर्यात पर दोन चुंगी ली जाती थी। खेबर, बोलन , गुरम , दर्रों, से थलमार्ग द्वारा विदेशों से व्यापर होता था. जैसलमेर राज्य में नमक का उत्पादन बहुत होता था। हींग व् गरम मसाले आयत किये जाते थे। उस समय जैसलमेर भारत की सबसे बड़ी व्यापारिक मंडी थी। तनोट दी सामरिक महत्ता के कारन इस नगर पर दुश्मन की हमेशा नजर रहती। थी इस कारण यहाँ तनोटगढ़ की स्थापना भाटी तणुराव ने माघ पूर्णिमा पुष्य नक्षत्र मंगलवार के शुभ दिन की थी।
"सम्वंत सात सों सत्यसि कोट तनोट कराए, मांग पूर्णिमा पुष्य मंगल शुभ दिन थिर ठांय। "इस गढ़ में सर्व प्रथम स्वांगिया देवी का मंदिर बनाकर वह मूर्ति स्थापित की गई वर्तमान में दो सप्तसत मुर्तिया तनोट रे मंदिर में स्थित है। अपणे नाम पर ही देवी माता जी इस स्थल को तनोटराय कह कर सम्बोधित किया था। महारावल केहर ने अपने पुत्र के नाम पर एक कोट व् नगर बसाया था, तथा तणुराव ने तनोट राय मंदिर, लक्ष्मीनाथ मंदिर व् शिवजी का मंदिर अपने रेजकाल में बनवाये थे। तनोट स्थित मंदिर आवड़ माता जी के वचन से बनाया गया था तथा श्री स्वांगिया जी ने तनोट आकर मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई थी। यह संपूर्ण निर्माण मिटटी की ईंटों से करवाया गया था। तनोट माता की कृपा सदैव भाटी राव तनु के साथ ही रही , इस कारण उन्होंने निकटवर्ती प्रदेशो से मुसलमान आक्रांताओं को पराजित क्र उनसे संपूर्ण भूमि एवं सम्पति प्राप्त क्र उस पर अधिकार क्र लिया। राव तनु का दूसरा संघर्ष वराहों से हुआ तथा तीसरा लंगाहों से हुआ जो बुरी तरह पराजित होकर मुल्तान भाग गए। राव तनु से पराजित शत्रुओं ने आप बीती पठानों के सेनानी हुसैन को बताई। हुसैन शाह ने सभी पराजित शासकोंको संगठित कर विशाल सेना तैयार की तथा उनको आश्वाशन दिया की उनके अपने राज्य वापस लौटा दिए जाएंगे व् लूट कसे प्राप्त छान सम्पति का बंटवारा कर दिया। इस लोभ मे आकर वर्ग राजा तथा हुसैन शाह दोनों ने संयुक्त रूप से तनोट पर आक्रमण किया। भाटी तणुराव ने हुसैन शाह को मरने की प्रतिज्ञा ली तथा अपनी जन्मभूमि की रक्षा दस लिए विजय को प्रॉपर करना अपना लक्ष बनाया। हुसैन व् वराहों की सेना तथा तणुराव के बीच तीन दिन-रात युग चलता रहा। शत्रु सेना ने दुर्ग के द्वार खोलकर शत्रु सेना पर प्रचंड धावा बोलै जिससे शत्रु सेना में भगदड़ मच गई , कई सैनिक युद्धभूमि को छोड़कर भर गए। इस युद्ध में विजेराव कुंवर ने विजय रणभेरी बजे। तनोट राय माता की कृपा से तणुराव को विजयश्री प्राप्त हुई।
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