मार्च 2020 सार संग्रह महत्वपूर्ण फैक्ट के साथ
प्रतियोगिता दर्पण मार्च 2020 सार संग्रह
नमस्कार दोस्तो
आपके लिए प्रतियोगिता दर्पण के मार्च 2020 संस्करण का सार संग्रह लेकर आये हैं जिसमे हमने जनवरी 2020 का सारा करंट अफेयर्स कवर किया है। इस वीडियो को हुनर निम्न भाग में बनता है जिससे ये आपके लिए बहुत ही आसान और उपयोगी हो।
निम्नलिखित भागों में विभाजित किया -
- राष्ट्रीय परिदृश्य
- अंतराष्ट्रीय परिदृश्य
- आर्थिक परिदृश्य
- पुरस्कार एवं सम्मान
- खेल परिदृश्य
- नियुक्तिया
- विविध
अगर आप इस वीडियो को देखना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके सकते हैं...
इस वीडियो में हमने निम्नलिखित करंट अफेयर्स के निम्नलिखित बिंदुओं को सम्मिलित किया है -
- केंद्रीय बजट 2020-21
- पदम् पुरस्कार 2020
- भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांक
- आईसीसी क्रिकेट पुरस्कार 2019
- भारत वन स्तिथि रिपोर्ट 2019
- रायसीना डायलॉग 2020
- जी सैट- 30 सफलतापूर्वक लॉच
- विश्व आर्थिक मंच की 50वीं बैठक
- गोल्डन ग्लोब अवार्ड 2019
अगर आप इस वीडियो की पीडीऍफ़ डाउनलोड करना चाहते है तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
March pd 2020 |
For PDF Click Here
तवारीख जैसलमेर के अनुसार भादरिया रॉय
देवीजी माता जी की अनुकम्पा से सुबह तक वह जाल की सुखी शाखा हटी हो गयी थी और कुछ समय पश्चात बहादुरिया के अनुरोध पर वह स्वाम वह प्रकट हो गए थे। राव तनु जी एवं उनकी महारानी लोलंकिनी बहुत प्रसन्न हुई उन्होंने लकड़ी से बानी हुए आसान पर आवड जी को बिठाया तथा तीन बहने उनकी दायी और तथा तीन बहने व् भाई मेहरखे जी उनके बाई और खड़े हो गए। राव तनु जी तथा महारानी सोलंकिनी ने विधिवत राजसी पूजन आवड जी एवं उनकी बहनो एवं भाई का अभिषेक कर आशीर्वाद लिया। राव तनु जी एवं उनकी महारानी की सच्ची निष्ठां आस्था एवं भक्ति भाव प्रसन्न होकर आवड जी ने आशीष वचन में भविष्यवाणी करते हुए कहा की इस समय के वैमनस्यपूर्ण वातावरण में भाटी वंच के शाशको का शक्तिशाली राज्य स्थापित होगा तथा भाटी शाशक हमेशा विजयी होंगी तथा राओ तनु जी का एक एक पुत्र प्रसिद्ध राजा होगा। जोस्का यश चरों और चिरस्थाई रहेगा। राव तनु जी ने भी श्रद्धा पूर्वाद प्राण लिया की मुने समस्त राजवंश , भाटी भाई बंधुओ में आवड जी की पूजा अर्चना नियमित रूप से होती रहेगी उन्होंने भादरिया नमक स्थान पर देवल की स्थापना करके इसकी प्रतिष्ठापना करवाई तथा आवड जी का आज्ञानुसार बोर के टीले के चारो और के क्षेत्र को गायों के चरागाह हेतु ओरण के रूप में संरक्षित करवाया। राव तनु भाटी के अनुज बहादुरिया से आवड जी अत्यंत प्रसन थे। अतः उन्होंने इनके नाम से इस स्थान भादरिया रे रखकर उनकी उपमा को शोभनीय बनाया।
महारानी सोलंकिनी की समर्पण भक्ति से भी आवड जी अत्यंत प्रसन थे। उन्होंने अपनी अनुकम्पा जताने के लिए बेरी के वृक्ष पर टंगे हुए लकड़ी के झूले का एक लहरा लिया जो वर्तमान में भादरिया मंदिर में विधमान है। आवड जी माता ने अपनी ीचा को व्यक्त करते हुए राव तनु जी को कहा की वह वापस लौटकर तनोट जाये. वह उनका मंदिर बनाई तथा उसका नाम तनोटिया जी रखे जिसकी प्राण प्रतिष्ठा वः अपने स्वम के हाथो से करेगी। राव केहर भाटी की महारानी झाली को स्वप्न में तनोटिया जी ने दर्शन दिए और उन्हें पुत्रवती आशीर्वाद देकर कहा की वहअपने पुत्र का नाम तनु रखे। रथा उनके बताये गए शुभ स्थान पर नगर बसाकर वह मंदिर और दुर्ग बनाये इससे तुम्हारे यश और गौरव में वृद्धि होगी और राजलक्ष्मी स्थिर रहेगी।
जैसलमेर की ख्यात में इसका उल्लेख है..
देवी माता जी का आदेश शिरोधार्य कर राव केहर भाटी ने तनोट नगर बसाया तथा देवी का मंदिर बनाया। आवड जी ने बलूचिस्तान स्थित हिंगलाज रे मंदिर जहा महिषासुर मर्दिनी का मूल अंश गिरा था. की दर्शन करके लौटते समय तनोट में ठहरकर स्वम सहित सभी बहनो की मुर्तिया स्थापित करवाकर मांग मॉस मंगलवार के दिन प्राण प्रतिष्ठा संपूर्ण करवाई। इस शुभ दिन के पश्चात् उन्हें श्रद्धा से तनोटिया रे माता नाम से सम्बोदित किया जाने लगा. इस मंदिर की पूजा शाकद्वीपीय ब्राह्मण द्वारा जैसलमेर घराने द्वारा किया जाता था. सन्न 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध सीमा सुरक्षा बल के पुजारी द्वारा किया जाता है। राव केहर भाटी ने 46 वर्षों तक शासन किया। वराहो के साथ युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए तब राव तनु तनोट के शासक बानी। आवड भादरिया राय में माड़ प्रदेश के निवासियों के आग्रह पर देवीकोट गाओं के पास बींझे नाम के राक्षस का वध किया था। इस कारन वह इस क्षेत्र में बींझोराय जी नाम से प्रसिद्ध हुई। उन्ही के आशीर्वाद से राव तनु जी का पुत्र जिसका नाम विजयराव रखा गया।
तनोट से 21 कोस दूर बींझनोट का दुर्ग निर्मित करवाकर वह देवी माता जी का मंदिर भी बनवाया। इस दुर्ग हेतु धन की कमी के चलते राव तनु जी ने माता जी से आर्थिक सहायता के लिए प्रार्थना की तब देवी माता जी ने उन्हें आदेश दिया की तनोट से दूर जाल दे वृक्ष पर एक लड़का हुआ छोटा सा हिंडोला और उसके ऊपर लाल रंग का ध्वज होगा. उस स्थान पर जाल के वृक्ष की जड़ो में गुप्त धन है जो उन्हें खोदने से मिल जटगा। राव तनु जी ने निर्देशानुसार उस स्थान से धन प्राप्त करके दुर्ग का निर्माण करवाया। विजयराज जी ने भटिंडा के वराहो को पराजित कर दिया था। लेकिंग कीच समय बाद वराहो ने मुल्तान के लंघाओं के सहयोग से तनोट पर आक्रमण कर दिया इस परिस्थिति में तनोट की रक्षा करना असंभव था विजयराज ने इस संकट से निपटने के लिए देवी माता जी की पूजा अर्चना कर यह प्राण लिया की विजय होने पर शीश कमल के रूप में अर्पित करूँगा। माता जी के आशीर्वाद से विजयराज की युद्ध में विजयश्री प्राप्त हुई विजयराज ने नित्य कर्म से निवृत होकर चार्मिक शुभ कार्य हेतु देवी माता जो के समक्ष अपना शीश काटने के लिए गर्दन पर तलवार राखी लेकिन देवी माता जी ने अदृश्य रूप में उन्हें ऐसा करने से रोक दिया तथा दर्शन देकर विजयराज पर कृपा दृष्टि बनाये रखने हेतु अपनी एक सोने की चूड़ी उतारकर लवम के प्रतीक के रूप में पहनकर रखना भाग्य शकुन उनका साथ देगा। तथा हमेशा वे विजयी रहेंगे। देवी जी द्वारा प्रदान की गयी चूड़ी पहनने के कारन हमेशा इतिहास में विजयराज को चुड़ला नाम से प्रसिद्धि मिली। जैसलमेर की ख्यात में इसका उल्लेख है।
इस प्रकार सुल्तान के सूबेदार हुसैन शाह ने प्रतिशोध लेने के लिए तनोट पर फिर से आक्रमण किया। विजयराओ चुड़ला इस युद्ध में अपने आप की असमर्थ समझकर देवी माता जी से संगर्ष करने हेतु आह्वान किया। विजयराव चूड़ा की रक्षार्थ हेतु देवे माता जी ने पलामलक्ष्मी या शगुन चिड़िया के रूप में विजयराय के घोड़े की कनोटि के बीच स्थान ग्रहण कर लिया। देवी माता जी ने एक खांडा तलवार विजयराय की प्रदान की। युद्ध आरम्भ होते ही विजयराय चूड़ा एक तलवार से देवी जी ढ अलौकिक शक्ति से शत्रु सेना पर एक हजार वार एक साथ होने शुरू हो गए। अंतत विजयराय चुड़ला विजयी रहे। इस विजय की स्मृति में भाटियों के राजकीय चिह्न में सवारी के घोड़े के ललाट के मध्य हरे रंग से पालम पक्षी चित्रित किया जाता है। त्योहारों, उत्सवों व मांगलिक कार्यों के अवसर पर महारावल के सवारी घोड़े के कनोटि के बीच में प्रतीक चिह्न लगा रहता है तथा देवीजी के खांडे की पूजा भी दशहरे पर की जाती है। आवड जी की असीम कृपा से विजयराज ने युद्धों में विजयश्री प्राप्त की थी। ईरान खुरासान की फौज को परास्त कर उनमे २२ परगने जीते तथा वरोहो व् पंवार को भी परास्त किया। तांवाल मारोठ, किरोहर भटनेर व् मुमणवाह 5 दुर्गो पर अधिकार कर लिया।
झाला पंवारों की सेना ने तन्वत पर अधिकार कर लिया। तभी आवड जी के आदेश से राइका नेग ने इसकी सुरक्षा कर ली थी। देवराज ने रत्ननाथ जोगी की कृपा से दरवाल दुर्ग की प्रतिष्ठा की , तथा सिद्ध रावल की उपाधि की प्राप्त किया। देवराज ने आवड जी के दर्शन करके जब वह राजदरबार में गया तो आवड जी प्रसन्न होकर उन्हें एक दिव्य तलवार प्रदान की , इसी से देवराज ने लगभग 52 युधो में विजय प्राप्त की। वर्तमान में यह तलवार जैसलमेर दे दुर्ग में घड़सी का खंडा के नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रकार अव्वाद जी की ख्याति मरुप्रदेश में चारो तरफ फ़ैल रही थी। तभी उ हे यह ज्ञात हुआ की जैसलमेर से 22 किमी दूर दक्षिण में पहाड़ की एक गुफा है उसमे रहने वाले तेमडे राक्ष्स ने आतंक फैला रखा है। आवड जी ने वह पहुंचकर उस राक्षस का वध करके गुफा का द्वार एक बड़ी शिला से बंद कर दिया और वह पर तारग शिला स्थापित की। तेमडे नमक राक्षस का वध करने के कारन यह तेमडेराय माता के नाम से प्रसिद्ध हुई. इसी प्रकार आवड जी ने तनोटराय से 7 किमी दक्षिण-पूर्व में घंटिये नमक राक्षस का संहार किया इस कारन वह स्थान घंटियाली तथा माता घंटियाली नाम से पूजी जाने लगी। भटियो की दुलदेवी माँ स्वांगिया जी आवड माता ने भौतिक देग से माडधरा पर विचरण किया तथा राव तनु के पौत्र महारावल देवराज की वरदान प्रदत दिग्विजयी सम्राट बनाकर अपना अवतरण मांढरा में सार्थक समझा और तेमडेराय की तरंग शिला पर बैठकर सभी बहनो सहित हिंगलाज माता बलूचिस्तान की तरफ देखते देखते ब्रह्माण्ड में अदृश्य हो गए।
इस प्रकार सुल्तान के सूबेदार हुसैन शाह ने प्रतिशोध लेने के लिए तनोट पर फिर से आक्रमण किया। विजयराओ चुड़ला इस युद्ध में अपने आप की असमर्थ समझकर देवी माता जी से संगर्ष करने हेतु आह्वान किया। विजयराव चूड़ा की रक्षार्थ हेतु देवे माता जी ने पलामलक्ष्मी या शगुन चिड़िया के रूप में विजयराय के घोड़े की कनोटि के बीच स्थान ग्रहण कर लिया। देवी माता जी ने एक खांडा तलवार विजयराय की प्रदान की। युद्ध आरम्भ होते ही विजयराय चूड़ा एक तलवार से देवी जी ढ अलौकिक शक्ति से शत्रु सेना पर एक हजार वार एक साथ होने शुरू हो गए। अंतत विजयराय चुड़ला विजयी रहे। इस विजय की स्मृति में भाटियों के राजकीय चिह्न में सवारी के घोड़े के ललाट के मध्य हरे रंग से पालम पक्षी चित्रित किया जाता है। त्योहारों, उत्सवों व मांगलिक कार्यों के अवसर पर महारावल के सवारी घोड़े के कनोटि के बीच में प्रतीक चिह्न लगा रहता है तथा देवीजी के खांडे की पूजा भी दशहरे पर की जाती है। आवड जी की असीम कृपा से विजयराज ने युद्धों में विजयश्री प्राप्त की थी। ईरान खुरासान की फौज को परास्त कर उनमे २२ परगने जीते तथा वरोहो व् पंवार को भी परास्त किया। तांवाल मारोठ, किरोहर भटनेर व् मुमणवाह 5 दुर्गो पर अधिकार कर लिया।
झाला पंवारों की सेना ने तन्वत पर अधिकार कर लिया। तभी आवड जी के आदेश से राइका नेग ने इसकी सुरक्षा कर ली थी। देवराज ने रत्ननाथ जोगी की कृपा से दरवाल दुर्ग की प्रतिष्ठा की , तथा सिद्ध रावल की उपाधि की प्राप्त किया। देवराज ने आवड जी के दर्शन करके जब वह राजदरबार में गया तो आवड जी प्रसन्न होकर उन्हें एक दिव्य तलवार प्रदान की , इसी से देवराज ने लगभग 52 युधो में विजय प्राप्त की। वर्तमान में यह तलवार जैसलमेर दे दुर्ग में घड़सी का खंडा के नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रकार अव्वाद जी की ख्याति मरुप्रदेश में चारो तरफ फ़ैल रही थी। तभी उ हे यह ज्ञात हुआ की जैसलमेर से 22 किमी दूर दक्षिण में पहाड़ की एक गुफा है उसमे रहने वाले तेमडे राक्ष्स ने आतंक फैला रखा है। आवड जी ने वह पहुंचकर उस राक्षस का वध करके गुफा का द्वार एक बड़ी शिला से बंद कर दिया और वह पर तारग शिला स्थापित की। तेमडे नमक राक्षस का वध करने के कारन यह तेमडेराय माता के नाम से प्रसिद्ध हुई. इसी प्रकार आवड जी ने तनोटराय से 7 किमी दक्षिण-पूर्व में घंटिये नमक राक्षस का संहार किया इस कारन वह स्थान घंटियाली तथा माता घंटियाली नाम से पूजी जाने लगी। भटियो की दुलदेवी माँ स्वांगिया जी आवड माता ने भौतिक देग से माडधरा पर विचरण किया तथा राव तनु के पौत्र महारावल देवराज की वरदान प्रदत दिग्विजयी सम्राट बनाकर अपना अवतरण मांढरा में सार्थक समझा और तेमडेराय की तरंग शिला पर बैठकर सभी बहनो सहित हिंगलाज माता बलूचिस्तान की तरफ देखते देखते ब्रह्माण्ड में अदृश्य हो गए।
Thanks sir updates
ReplyDeleteYou good sir
ReplyDeleteThanks sir 🙏 🙏 🙏
ReplyDelete