March 2020 With Explanation PD

Pratiyogita Darpan March 2020 With Explanation

नमस्कार दोस्तों
इस वीडियो में आपके लिए प्रतियोगिता दर्पण के मार्च 2020 संस्करण से व्याख्या सहित का वीडियो लेकर आये है जो आपके लिए बहुत ही हेल्पफुल होगा। इस वीडियो में मार्च २०२० के संस्करण को निम्न भागो में बाँट कर वीडियो तैयार की गयी है-
1 अंतराष्ट्रीय परिदृश्य \
2 राष्ट्रीय परिदृश्य
3 खेल परिदृश्य
4 पुरस्कार एवं सम्मान
5 नियुक्तियां

Pratiyogita Darpan March 2020  With Explanation

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इस वीडियो में हमने जनवरी माह के सभी करंट अफेयर्स को व्याख्या सहित समझने का प्रयास किया है जिसमे निम्न बिंदुओं को शामिल किया गया है -
  1. केंद्रीय बजट 2020-2021 
  2. वन स्तिथि रिपोर्ट 2019 
  3. पदम् पुरस्कार 
  4. आईसीसी 2019 पुरस्कार 
  5. गोल्डन ग्लोब पुरस्कार 
  6. अन्य 

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भाटी शासक एवं शक्ति उपासना 

भाटियो की विजयश्री मैं स्वांगीया माता का विशिष्ट स्थान है।  इन्होने शकुन चिड़िया का रूप धारण कर रअनुराव के राज सिहासन पर बैठे।  ऐसे लोग मान्यता प्रचलित है की स्वांग या भले की आणि पर बैठी या सिंहासन पर बैठी, दुर्ग के बहार भले पैर बैठी युगभूमि में सवारी घोड़े की कांऊटी पैर स्थायि रूप से वास किया।  तनोट  विजयश्री के पश्चात तणुराव ने सन्यासी जीवन अपना लिया जिससे तनोट निर्जन सा हो गया था।  तनोट क्षेत्र के जमींदार सोलंकी जाती के थे।  भाटियो ने उन्हें अपने राज्य काल से निकलने का प्रयास किया किन्तु वे असफल रहे।  निरंतर परेशां किये जाने कारण सोलंकी जाती के लोग रामगढ में आकर बस गए जबकि तनोट क्षेत्र में उनड़ जाती को बसाया गया तथा उनकी व्यवस्था के लिए हाकिम नियुक्त किया गया।  तत्कालीन तनोट के राजा द्वारा गाओं बसने के लिए कुँए बावड़िय खुदवाई गई।  लेकिन जय खारा होने के कारण यहाँ लोग बस नहीं पाए थे।  
                 जैसलमेर के चंद्र वंशी यादव शासक शक्ति उपासक के रूप में प्रशिद्ध  रहे है।  यदु वंश के भाटियो की कुलदेवी स्वांगिया देवी को माना जाता है।  भाटी वंश में पुत्र जन्मोत्सव, राज्यारोहण,विवाह, पदग्रहण, करते समय सर्वप्रथम स्वांगिया देवे की पूजा की जाती थी।  ऐसा माना जाता था की इससे शाशन व्यवस्था में नवसंचार एवं प्रेरणा शक्ति बानी रहती थी। जैसलमेर राज्य के प्रतीक चिह्न के रूप में बनाया गया स्वांग एवं शगुन चिरई स्वांगिया देवी के प्रतीक के रूप में है।  इसके अतिरिक्त जैसलमेर राज्य की तरफ से किया जाने वाले पात्र व्यव्हार ताम्रपत्र परवानो , पत्तो,पैर भी श्री स्वांगिया जी , श्री गणेश , श्री लक्ष्मीनाथ  को सांसे पहले लिखा  उसके उपरांत पात्र एवं विवरण लिखा जाता था।  इसका प्रमाण राजस्थान राज्य अभिलेखागार बीकानेर में स्थित जैसलमेर राज्य से सम्बंधित रिकॉर्ड एवं।   जिसमे दीवान द्वारा अन्य राज्यों को लिखे गए पत्रों में सर्वप्रथम श्री  श्री लक्ष्मीनाथ जी का नाम का उल्लेख प्रॉपर होता है।  

राजस्थान राज्य अभिलेखागार बीकानेर 

राजस्थान राज्य अभिलेखागार बीकानेर से   होता है।  कुलदेवी का पूजन जाती विशेष एवं राजवंश अपने भक्ति भाव एवं विश्वास के लिए करते थे , इसकी स्तुति के बिना कोई भी कार्य पूर्ण नहीं।   नवरात्रों में इनके पूजन की विशेष व्यवस्था जैसलमेर के राजघराने द्वारा की जाती थी।  इसका प्रमाण जैसलमेर के प्रत्येक परिवार में घरो दस भीतर मंदिर व् चोतरा जिसमे नियमित रूप से धुप डीप करने का प्रचलन था।  भाटियो ने अपनी कुलदेवी योगमाया भद्रा काली एवं आराध्य देव श्री लक्ष्मीनाथ का मंदिर का निर्माण करवाया था।  जो वर्तमान में  तनोट माता मंदिर के नाम से प्रशिद्ध है।  भाटी शासको ने जिन स्थानों पर अपनी राजधानिया दुर्ग एवं नगर बसाये वह उन्होंने शक्ति उपासना की रूप में अपनी देवी देवताओ के मंदिरो को भी प्रतिष्ठापित किया।  शक्ति की पर्याय देवी माता ने जब जब भाटी शाशको पैर संकट आय है।  तब इनके राजव्यवस्थ की पालमचीड़ी के रूप में अश्व की कनोटि पैर बैठ कर रक्षा की है।  

                    विजयराज चुडाला के अंदर माता ने ऊर्जा शक्ति आत्मविश्वास का संचार करने के लिए अपने हाथ की चुड़ प्रदान की थी।  विजयराज के पुत्र देवराम भाटी के वंश की रक्षा के लिए दिव्यता पुरोहित पुष्करणा ब्राह्मण ने अपने ज्येष्ठा पुत्र रतनु को देवराज के साथ भोजन कराकर भाटी वंश की रक्षा की थी।  यादव भाटी माता तनोट को भद्रकाली महिषासुर मर्दिनी के रूप में पूजते है।  वर्ष 1965 व् 1971 के युद्ध में पाक शत्रु सेना द्वारा सेकड़ो बबम मंदिर परिसर पर बरसाए फिर भी मंदिर परिसर को किसी प्रकार की खरोंच तक नहीं आयी तथा भारतीय सैनिको को विजय प्राप्त हुई थी।  चैत्र व् आसोज मॉस के नवरात्रो में संपूर्ण भारत से श्रद्धालु आती है।  जिनकी माता मनोकामना पूर्ण करती है।  आवड जी, तनोट के पूर्वज चेला जी सुवा शाखा के घडवी चरण थे।  इनका मुख्या व्यवसाय पशुपालन था।  इसके साथ ही घी एवं घोड़ो को बेचने का कार्य भी करते थे।  चारणो की कथानुसार चेलजी के वंश में मामड़िया जी का नाम के एक व्यक्ति हुए जो जसभान के राजदरबार में बड़ा आदर सत्कार था।  राजकार्य शुरू करने से पहले प्रातः काल जसभाँ मामड़िया  का सर्व प्रथम दर्शन करने से पहले प्रातः काल जसभान अपना सौभाग्य समझते थे।  एक दिन लोद्रवा का वणिक बठिया किसी कार्य से राजा के पास प्रातः काल पहुंचा, इस पर राजा क्रोधित हुआ, तब वणिक बाठिया ने कहा की आप जिसके दर्शन सुबह करते हो वह तो निःसंतान है।  हम नगरवासी तो इनका मुँह देखना भी अशुभ मानते है।  इस बार का पता जब मामड़िया जी को लगा तो इनको बड़ा शुभ हुआ।  उन्होंने सुयोग्य संतान प्राप्त करने के उद्देस्य से बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज माता की सात बात पैदल यात्रा की।  हिंगलाज माता शक्तिपीठ के बारे में अनेक इतिहासकारो एवं विद्वानों ने लिखा है की हिंगलाज माता का बलूचिस्तान में स्थित स्थान भारत की ५१ शक्तिपीठो में से हिन्दुओ का प्रथम शक्तिपीठ मन जाता है।  भगवती  महिषासुर मर्दिनी ने महिषासुर व् अन्य राक्षसों का वध करने के बाद ब्रह्माण्ड में अपने अवतरित होने के उद्देश्य को पूर्ण समझ अपने शरीर के अंगो को छिन्न भिन्न करने के लिए वायुमंडल की सभी दिशाओ में फेंक दिया था।  इनमे से उनके अंग का ब्रह्मरन्ध्रा हिंगोल नदी की किनारे स्थित स्थान में गिरा अतः एहि देवी हिंगलाज माता कहलायी।   




बलूचिस्तान स्थित हिंगलाज माता का मंदिर 

इसी तरह अम्बाजी शक्तिपीठ पैर सटी के ह्रदय का भाग गिरा था जिन स्थानों पर जो अंग गिरा वह उसी अंग की पूजा की जाती है।  भारत के उत्तर में ज्वालामुखी, पश्चिम में हिंगलाज एवं दक्षिण में मिनाक्षी , पूर्व में कामाक्षी  को शक्ति संप्रदाय में सिद्धपीठ एवं दक्षिण में इस तरह की मान्यता का समर्थन चुड़ामणि एवं मरुतान्त्र ग्रन्थ भी करते है।  हिंगलाज माता को आदिशक्ति मन जेठ है।  यह प्राकृतिक शक्ति का रूप है।  चारण जाती में हिंगलाज पीठ की विशेष मान्यता है  इनके नाम हिंगलाज दान रखने की परंपरा वर्तमान में भी प्रचलित है।  हिंगलाज देवी का स्थान सिन्दु नदी के तट से करीब 122 किमी पश्चिम तथा अरब सागर से 18 किमी उत्तर में जहा मकरान तथा लुस अलग अलग।   वह पहाड़ की अँधेरी गुफा में स्थित है। श्री भंवर सिंह समोर ने राजस्थान शक्ति काव्य में लिखा है की मुसलमानो में भी हिंगलाज की बड़ी मान्यता है. पाकिस्तान में रहने वाले मुस्लिम संप्रदाय के लोगो में हिंगलाज देवी लाल चोले वाली मई नानी हिंगलाज और बीबीरानी के नाम से प्रसिद्ध है।  सुदूर स्थानों से मुस्लमान लोग नानी का हज करने बावन स्थनो की परिक्रमा करने आते है। हिंगलाज देवीकी पूजा जुमन खांप की मुस्लमान करते है।  इस खांप की ब्रह्मचारी कन्या को देवी की पूजा अर्चना करने का अधिकार मिला हुआ है।  मामड़िया जी ने इसी हिंगलाज माता शक्तिपीठ के दर्शन कर श्रद्धा एवं निष्ठां से पूजा अर्चना कर अपनी याचना प्रकट की तब प्रसन होकर हिंगलाज माता  तुम सात नट श्रद्धापूर्वक पैदल चलकर आये हो  प्रसन्न हुई में सार कन्याओ के रूप में आपके घर जन्म लुंगी तथा साथ में एक भाई भी लाऊंगी।  
            माता हिंगलाज की असीम कृपा से मांड प्रदेश के चेलक गाओं में मामड़िया जी के घर उनकी पत्नी महाव्रती की कोख से चैत्र सऊदी नवम विक्रम सम्वत 808 सनं 751 ई  मंगलवार के दिन आवड़ जी का जन्म हुआ था।  पुत्री जन्म पर सब मामड़िया जी को बधाई दी गयी तो उन्होंने "आईजी" नाम से सम्बोधित किया  इसके बाद आवड़ जी से छोटी 6 बहनो का जन्म गए जिनके नाम आशा, गेहलि, रूप, सेसी , होल , और लांग था, जेठमल जी चारण ने इस सम्बन्ध में लिखा है।  की-
"आठ सो आठ समत मधु सुदी नम मंगलवार महादेवी मामड़  घरे लियो अवतार"
विजय स्तम्भ शीलकेख तनोट मंदिर जैसलमेर में भी आवड का जन्म विक्रम सम्वत 808 चैत्र सऊदी नवमी मंगल वार होना उत्कीर्ण किया गया है।  मामड़िया जी के सात पुत्रियों के बाद एक पुत्र महरखोजी का जन्म हुआ जो सभी बहनो से छोटे थे।

 मामड़िया जी के सात पुत्रियों के बाद एक पुत्र महरखोजी का जन्म हुआ 

आवड जी रूपवती थी इन्होने कानो में डुंडल धारण करके नाथ संप्रदाय में दीक्षा ग्रहण की थी।  इस कारन इन्हे आईनाथ जी नाम से पुकारा गया।  सतो बहनो ने आजीवन ब्रह्मचारिणी से रूप में रहते हुए अपनी दिव्या शक्तियों से सम्पूर्ण मानव जाती का कल्याण किया।  एक समय मांड प्रदेश में भयंकर अकाल पड़ा जिसके कारन मामड़िया जी अपने परिवार भाई बंधुओ तथा पशुओ को लेकर चेलक गांव  के और रावण हुए।  हकड़ा नदी के तट पर स्थित नानण गढ़ जो वर्तमान में सुल्तानपुर है की इन्होने अपना अस्थाई निवास स्थल बनाने का निर्णय लिया यह भाग उपजाऊ एवं पशुओ की पौष्टिक घास उत्पादन की दृष्टि से समृद्ध था।  मामड़िया जी एवं उनके परिवार के सदस्यों ने घासफूस , खींप सरकण्डो, कंटीली झाड़ियों की सहायता से अपने परिवार के आश्रय स्थल बनाये व् पशुओ के रहने हेतु कांटेदार बाड़े बनाये।   सूर्योदय होते ही मामड़िया जी तथा उनके पतिवार के लोग घरेलू कामकाज से निवृत होकर घोड़ो ा अन्य पशुओ को केकर घास के मैदानों में चले जाते थे तथा सूर्यास्त होने पैर वापस अपने आश्रय स्थल लौटकर आते थे।  इस दौरान सतो पुत्रिया अपनी पिता की आज्ञानुसार दिर भर अपने आसपास खेलती रहती थी तथा साथ में मांड प्रदेश के गवई लोकगीत गाकर व्यस्त रहती थी।  मामड़िया जी ने अन्यत्र स्थान पर जाने की लिए  रखा था तथा उनको व्यस्त रखने के लिए चरखे एवं रुई की भी व्यवस्था की गयी थी।  लेकिन सतो बहनो खेलने में व्यस्त रहती थी उधर झोपड़िया में रखे चरखे किसी अदृध्या शक्ति से अपने आप रुई कटाई का कार्य करते थे।  इस चमत्कार के कारण लोग जगत में इन्हे हत्यानी नाम से भी जाना जाता है।  

धन्यवाद

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