अप्रेल 2020 व्याख्या सहित दर्पण
प्रतियोगिता दर्पण अप्रेल 2020 व्याख्या सहित
नमस्कार दोस्तों
आप सभी की कम्पटीशन की तैयारियां अच्छी चल रही होंगी इसी आशा के साथ आपके करंट अफेयर्स की तैयारी के लिए आपके लिया एक महत्वपूर्ण वीडियो प्रतियोगिता दर्पण अप्रेल 2020 व्याख्या सहित का लेकर आये हैं मुझे आशा है यह वीडियो आपके लिए बहुत ही सहायक होगा।
दोस्तों इस वीडियो में फेरवारी 2020 से जुड़े हुए सभी करंट अफेयर्स को लिया गया है जो दर्पण की अप्रैल 2020 मॅगज़ीने से लिए गए है। अगर अपने अभी तक ये वीडियो नहीं देखि है तो आप नीचे दिए गए लिंक पर जाकर वीडियो दो देख सकते है
दोस्तों इस वीडियो में जिन जिन करंट अफेयर्स को शामिल किया वो सब निम्नानुसार है जिन्हे आप विस्तार से समझने के लिए वीडियो देखना होगा..
- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा
- बिम्सटेक सम्मलेन
- क्वांटम तकनीक पर राष्ट्रीय मिशन
- कॉप 13
- ई गवर्नेंस पर 23 वान सम्मलेन
- जीवन सुगमता सुचकांक
- बौद्धिक सम्पदा सूचकांक
- ऑस्कर अवार्ड्स
- फ़िल्म्अफेयर अवार्ड
- ऑस्ट्रेलिया ओपन टेनिस
- अंतर्राष्ट्रीय नियुक्तियां
वीडियो देकने के बाद अगर आपको वीडियो अच्छा लगे तो उसकी पीडीऍफ़ डाउनलोड करने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें -
इस वीडियो और पीडीऍफ़ की झलक आपको दिखते है की कितनी मेहनत करके आपके लिए ये पीडीऍफ़ तैयार की जाती है प्रस्तुत है कुछ पीडीऍफ़ के इमेजेज इस वीडियो में हमने बताया है की राजस्थान की पष्चिम सीमा पर स्तिथ जैसलमेर की मरुभूमि अपनी विरासत और गौरवशाली इतिहास एवं प्रयत्न की दृष्टि से विश्व विख्यात स्थल है। प्राचीन कल में जैसलमेर नगर में विकत भौगोलिक स्तिथि एवं आवागमन के साधनो के आभाव के कारन यहाँ की यात्रा करना अत्यंत दुस्कृर कार्य था। मरुभूमि में सरस्वती नदी का प्रवाह था। जिसके किनारे ऋषि मुनियो के आश्रम थे, जिसमे करि वेदो ग्रंथो ऋचाओं की रचना हुई थी। इस प्रकार जैसलमेर में एक आध्यात्मिक सांस्कृतिक संस्कृत का अद्याय प्रारम्भ हुआ। जिसके फलस्वरूप शक्तिपीठ मंदिर, मैथ, तथा धार्मिक स्थल बनाये गए, जहाँ प्रतिवर्ष लाखो भक्त अपने धार्मिक पवन यात्रा कर श्रद्धा सुमन चढ़ाते है
माता श्री हिंगलाज के वचन अनुसार मांड प्रदेश में भगवती आवड़ देवी के अवतरण के पश्चात् इन्होने अपने चमत्कारों से संपूर्ण जैसलमेर राज्य को परिचित करवाया, अपनी मरुप्रदेश में पवन यात्रा के साथ नागणेची, कलेडूंगर, भोजसरी देगराय, टेमबड़े रॉय व् तनोट माता नाम से प्रशिद्ध हुई। उनमे से प्रमुख रूप से श्री तनोट माता के इतिहास के बारे में में अपको कुछ बताने जा रहा हूँ।
जैसलमेर के धार्मिल साहित्य पर कई इतिहासकारों ने विवेचन किया है। पर तनोट माता के इतिहास पर विस्तृत कार्य करना अभी तक नहीं हो पाय है। इस प्रकार से यह मेरा विनम्र प्रयास है। जैसलमेर की यात्रा करने वाले देशी विदेशी पर्यटक तक तनोट माता का नाम सुनता है तो वह तनोट माता के इतिहास की जानने का प्रयास करता है। वैसे तो तनोट माता स्तिथ शिलालेखों व् इंटरनेट पर जानकारी मिल जाती है पर यह आने वाले पर्यटकों को संतुष्टि नहीं मिल पाती है। इस प्रकार श्री तनोट माता के आशीर्वाद से ही मुझे यह ब्लॉग लिखे का सौभाग्य प्रपात हुआ है इस ब्लॉग में तनोट माता के मंदिर के स्थापना, मंदिर ढ प्राचीन महत्ता, मंदिर कक परिचय एवं यात्रा वर्णन , मंदिर में होने वाली मंगल आरती, सैनिको की आराध्य देवी, सीमा सुरक्षा बल एवं तनोट माता ट्रस्ट के सागयोग से दी जाने वाली सुविधाओं, रुमाल संग्राहलय, पीर बाबा की दरगाह, तनोट माता के चमत्कारिक, शक्ति आदि का वर्णन किया गया है। श्री तनोट माता के इतिहास लिखने का पुनीत कार्य कार्य करने के लिए मैंने इतिहाइस्क ग्रंथो के रूप में जैसलमेर की ख्यात, तनोट माता से समन्धित शिलालेखों, पुस्तकों एवं जैसलमेर के इतिहास से सम्बंधित पुस्तकों, पत्रावलियों, बहियो का अध्ययन क्र सर गर्भित तथ्यों को अपने इस ब्लॉग में लिख रहा हूँ।
Thanks
जैसलमेर के धार्मिल साहित्य पर कई इतिहासकारों ने विवेचन किया है। पर तनोट माता के इतिहास पर विस्तृत कार्य करना अभी तक नहीं हो पाय है। इस प्रकार से यह मेरा विनम्र प्रयास है। जैसलमेर की यात्रा करने वाले देशी विदेशी पर्यटक तक तनोट माता का नाम सुनता है तो वह तनोट माता के इतिहास की जानने का प्रयास करता है। वैसे तो तनोट माता स्तिथ शिलालेखों व् इंटरनेट पर जानकारी मिल जाती है पर यह आने वाले पर्यटकों को संतुष्टि नहीं मिल पाती है। इस प्रकार श्री तनोट माता के आशीर्वाद से ही मुझे यह ब्लॉग लिखे का सौभाग्य प्रपात हुआ है इस ब्लॉग में तनोट माता के मंदिर के स्थापना, मंदिर ढ प्राचीन महत्ता, मंदिर कक परिचय एवं यात्रा वर्णन , मंदिर में होने वाली मंगल आरती, सैनिको की आराध्य देवी, सीमा सुरक्षा बल एवं तनोट माता ट्रस्ट के सागयोग से दी जाने वाली सुविधाओं, रुमाल संग्राहलय, पीर बाबा की दरगाह, तनोट माता के चमत्कारिक, शक्ति आदि का वर्णन किया गया है। श्री तनोट माता के इतिहास लिखने का पुनीत कार्य कार्य करने के लिए मैंने इतिहाइस्क ग्रंथो के रूप में जैसलमेर की ख्यात, तनोट माता से समन्धित शिलालेखों, पुस्तकों एवं जैसलमेर के इतिहास से सम्बंधित पुस्तकों, पत्रावलियों, बहियो का अध्ययन क्र सर गर्भित तथ्यों को अपने इस ब्लॉग में लिख रहा हूँ।
जैसलमेर की भौगोलिक पृष्ठभूमि
थार मरुस्थल में अवस्थित जैसलमेर जिला ऐतिहासिक महत्ता एवं समृद्ध सांस्कृतिक विरासत विश्व प्रशिद्ध प्रयत्न स्थल है। यहाँ के लोगो का सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन सरस एवं सुरम्य है। जैसलमेर अपनी कला संस्कृति, वास्तुकला भव्य ऐतिहासिक इमारतों एवं मरुस्थल के प्राकृतिक सौन्दर्य के कारन प्रयटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहा है। विश्व प्रशिद प्रयत्न स्थंल जैसलमेर थार मरुस्थल का घ एक भू भाग है। थार शब्द की उत्पति थल से हुई है, जिसका अर्थ रेट का टीला है, स्वतंत्रता से पूर्व जैसलमेर के लिए रियासत शब्द का प्रयोग होता था। इसका प्राचीन नाम मांड था। प्राचीन शिलालेखों में जैसलमेर का नाम माड़ धरा एवं वल्ल प्रदेश था। जीवाश्मों के प्रमाण से यात होता है की किसी समय में क्षेत्र विशाल कश्तीय पोधो से भरा हुआ था। किसी समय समुद्री जैसा दलदल क्षेत्र हुआ करता था। जो जलवायु परिवर्तन के साथ साथ धीरे धीरे आर्द्र अवस्था से शुष्क होते होते मरुस्थल में बदल गया। इस क्षेत्र में सस्वती और घाघर नदिया प्रवाहित होती थी।
जैसलमेर का पश्चिमी क्षेत्र मरुस्थलीय था तथा शेष तीन भागो में पहाड़िया, कंटीली झाडिया, सूंदर चरागाह थे। जिसे स्थानीय बोली में मगर तथा ठरड़ा कहा जाता था। पश्चिमी भाग में बालुका स्तूप जो चैत्र वैशाख मॉस में चलने वाली धूल भरी आँधियो से एक स्थान से दूसरे स्थान पर अपना स्थान बदलते रहते है यह क्षेत्र पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र। जैसलमेर में पूर्वी मैदानों भाग अधिकतम आबादी वाला भू भाग था इस क्षेत्र में वशाति नदियाँ प्रवाहित होती थी। इन नदियों के जल को घेरकर खड़ीं बनाये जाते थे। जिसमे गेंहू चना ज्वार कह कृषि की जाती थी
जैसलमेर जिले में पड़ा अकाल
दक्षिण पूर्वी मैदानी भाग अधिकतम आबादी वाला भू भाग था इस पर वर्सटी नदिया प्रवाहित होती थी इन नदियों के जल को घेर कर खड़ीं बनाये जाते थे जिसमे गेंहू चना, ज्वर की कृषि की जाती थी। जैसलमेर क्षेत्र में त्रिकाल के समय खाभा से लेकर दक्षिणी पश्चिमी रामगढ के मृर्तरी भाग में कहीं भी वर्षा नहीं हुई थी. इस अकाय को छप्पनिया अकाल के नाम से जाना जाता था। इसमें चारा पानी एवं अन्न होने के कारन लोग रोजगार की तलाश में गाओं छोड़कर सिंध क्षेत्र में चले गए थे। स्थनिय बुजुर्ग लोग आज भी छपनिया अकाल से करते है इस त्रिकाल में लोगों ने तूस, भुरट एवं लोँना को रोटियां बनाकर खाई थी। इस कारण अकाल को देखने वाले लोग ने इस पर कविता भी लिखी है.
यहाँ मिलने वाले जीव जंतु एवं वनस्पतिया
जैसलमेर क्षेत्र में वनस्पति के रूप में बाबुल कीकर खेजड़ी फोग थॉर आक भरत कुमत खीप गूगल आदि वनस्पति पायी जाती है। जंतुओं में मरू लोमड़ी, नेल गए , गीदड़, कुरंग, जंगली सूअर, नेवला हिरन खरगोश गोडावण आदि प्रजातियां पायी जाती है। मरू स्थलीय भाग में विषैले सांप नाग नागराज धामिन गेरवां एवं पीवणा सर्प पाए जाते हैं कुरजां , चिड़िया , तिलोर, बाज, तीतर, बगुला, मोर, पपैया, गेरी, तोता पक्षियों को प्रजातियां पाई जाती है। ग्रीशाम ऋतू में यहाँ का अधिकतम तापमान 48 डिग्री रहता है.. शीट ऋतू में न्यूनतम बिंदु तक तापमान चला है। मई जून में धूल भरी आंन्धीय चलती रहती है.. जिन्हे स्थानीय बोली में लू कहते है..
जैसलमेर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
जैसलमेर नाम के ज्कजय की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल में महारावल जैसल द्वारा 1156 में की गहि थी। जैसलमेर दो शब्दों जैसल और मेरु से मिल दजकर बना है। जैसलमेर शब्द इस रियासत की स्थापना करने वाले जयशाल को तथा मेरु शब्द राव जयशाल द्वारा बनाये गए दुर्गा को दर्शाता है प्राचीन काल में मांड धरा, वल्ल मंडल के नाम से प्रशिद्ध जैसलमेर नगर को अनेक उतर चढाव के पश्चात् अन्त में 1949 में स्वतन्त्र भारत में विलय कर दिया हाय। ऐसे भी मान्यता है की महानहरात युद्ध के पश्चात् कालांतर में यादवों का मथुरा से बड़ी संख्या में बहिर्गमन हुआ, जैसलमेर के भूपुरवा शासको के पूर्वज जो अपने वंश को भगवन कृष्णा के वंशनुक्रम में मानते थे] वे 6 ठी शताब्दी में जैसलमर की धरती पर आकर बस गए थे। इसके बारे में यह किवदंती प्रचलित थी की द्वापर युग में भगवन कृष्णा और अर्जुन एक बार किसी कारन से यहाँ आये थे, अर्जुन को प्यास लगने पर उन्होंने सुदर्शन चक्र से एक कुआ खोदा तथा भविष्यवाणी की फड़ कभी जैसल नाम का यदुवंशी राजा यहाँ दुर्ग बनाकर अपनी राजधानी स्थपित करेगा।
Thanks
Great work sir
ReplyDeletePlease upload mcq aprail