मई 2020 महत्वपूर्ण MCQ दर्पण, घटना चक्र, क्रॉनिकल
मई 2020 महत्वपूर्ण MCQ दर्पण, घटना चक्र, क्रॉनिकल
नमस्कार दोस्तों
मई 2020 के संस्करण जिनमे दर्पण, घटना चक्र, क्रॉनिकल आदि मागज़ीन से होने आपके लिए महत्वपूर्ण बहुचायानात्मक प्रश्नो का संग्रह लेकर आये है जो आपके आने वाले कॉम्पिटिशन के लिए बहुत लाभदायक होगा।
इस विडिओ में आपके लिए 100 MCQ का चयन किया गया है। जो बहुत लाभदायक होंगे आपकी तैयति के लिए।
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तनोट माता का मंदिर
जैसलमेर से तनोट 130 किमी भारत पाक सीमा पर अवस्तिथ है। भाटी राव तनु उस आवड जी माता की आज्ञा ले यहाँ स्वांगिया जी का मंदिर निर्मित किया था. इस मंदिर की प्रतिष्ठा आवड जी माता द्वारा हिंगलाज धाम से लौटते समय की गयी थी। इसलिए आवड जी माता तनोटराय के रूप में पूजी जाती है। भारत की स्वतंत्रता से पूर्व इस मंदिर की पूजा शाकद्वीपीय ब्राह्मण करते थे। भारत पाक युद्ध के समय भारतीय सैनिको को जी चमत्कार दिया उससे सैनिको के मन में उनके प्रति अगाध श्रद्धा एवं भक्ति भाव मुत्पन्न हुआ और वर्तमान में यह सैनिको की आराध्य देवी के रूप में पूजी जाती है। सीमा सुरक्षा बल के पुजारी द्वारा घ पूजा अर्चना का कार्य किया जाता है। इस मंदिर को श्री तनोटराय ट्रस्ट एवं सीमा सुरक्षा बल द्वारा नवीनतम रूप प्रदान किया गया है। चैत्र एवं भाद्रपद के नवरात्रो में यह यहाँ विशाल मेलो का आयोजन किया जाता है।
देगराय जी का मंदिर
जैसलमेर से पूर्व दिशा में 50 किमी दुरी पर देगराय जलाशय पर बना हुआ है। ऐसे मान्यता है की आवड जी ने यहाँ दानवरूपी एक राक्षस का सुर की देग बनाकर अपने कपडे रक्त से रेंज थे। इसलिए यह स्थान देगराय का मंदिर कहलाता है। यह मंदिर देवीकोट गाओं के पास स्तिथ है। से मान्यता है की इस मंदिर में तात्री को रुकना कठिन है क्यूंकि यहाँ पर तात्री को नगाड़ों और घुंगरू की आवाज सुनाई देती है। तथा कभी कभी दीपक स्वयं प्रज्जवलित हो उठते है।
श्री स्वांगिया देवी का मंदिर (गजरूपसागर)
जैसलमेर से 4 किमी पूर्व की तरफ गजरूपसागर तालाब के समीप समतल पहाड़ी पर श्री स्वांगिया जी का मंदिर अवस्तिथ है। इसका निर्माण 1895 में महारावल गज सिंह ने करवाया था। गजरूप सागर जल संग्रहण की सुन्दर भूमिगत व्यवस्था का प्रतीक था। जैसलमेर के महारावल प्रातः उठते समाया दुर्ग से इस मंदिर के दर्शन करर्ते है। स्वांगिया माता भाटी वंश की कुल देवी के रूप में पूजी जाती है। विजयराव भाटी स्वांगिया माता जी अनन्य भक्त था। जो इतिहास में विजयराव चुडाला नाम से प्रसिद्ध हुआ। आधुनिक सुचना तकनिकी युग में शिक्षित लोगों का विश्वास देवी देवताओं पर से के होता जा रहा है। फिर भी यह स्वीकार करना होगा की कुछ दिव्या शक्तिया हमारी आदतों आचार विचार तथा संकरो में गुप्त रूप से विध्यमान रहती है। जो हमारी आंतरिक भवनों को आत्मबल और उत्साह संचार करने के लिए प्रेरित करती है। स्वांगिया माता जी के अलौकिक चमत्कारों के कारन लोगों में उनके प्रति अपर श्रद्धा एवं भक्ति भाव है। जैसलमेर की मरुभूमि में तनोटमाता के अलौकिक प्रभाव एवं उनकी चमत्कारिक शक्क्तियो से सभी लोग परिचित है। इसके आलावा इस धार्मिक मंदिर की यात्रा करने के लिए गुजरात, महाराष्ट्र , पाकिस्तान, मध्यप्रदेश एवं अन्य प्रदेशो के भी लोग आते है। देवी माता जी के चमत्कारिक कार्यो से यहाँ दे जन्मनाल में उनके प्रति अटूट आस्था एवं धार्मिक भावना है। ग्रामीण आंचलों में भी देवी शक्ति से अपनी मनोकामना की पूर्ति एवं भौतिक सुख सम्पति को प्राप्त करते है। ऐसे मान्यता प्रचलित है। जैसलमेर के लोकजीवन में शक्ति स्वरूप ७ शक्तियों की उपासना करते है। यहाँ के समाज में देवी देवताओं का पूजन कर मनौती मांगी जाती है। मनौती जाल के वृक्ष की शका पर लाल धागा बांधकर मांगी जाती है। देवी देवताओं की दया से जब पूर्ण जो जाती है तो श्रद्धा स्वरुप उन्हें छत्र तोरण चढ़ाया जाता है। इसी प्रकार जैसलमेर के तनोट मंदिर में देवी माता की उपासना के समय पूजा सामग्री धुप, अगरबत्ती नारियल ध्वजा दे अरिरिक्त मंदिर में आने वाला प्रत्येक श्रद्धालु एक रुमाल भी अपने साथ में लाते है। इस रुमाल को मनोकामना पूर्ण गॉन की कामना दे साथ स्थान पर बंधा जाता है। जब मनोकामना पूरी हो जाती है। तो उस स्थान पर बंधे रुमाल को खोलने के लिए श्रद्धालु अवश्य वापस जाता है। ऐसे मान्यता है की लोकजीवन में प्रचलित है की शक्ति की उपासना एवं आस्था के प्रतिन इस मंदिर के परिसर में रूमालों का एक संग्रह बन गया है। इस कारन लोग तनोट माता को अब रुमाल वाली देवी भी कहते है।
भारत पाक सीमा पर स्थित तनोट माता डीके मंदिर भारत पाक युद्ध का साक्षी रहा है। हिन्दू धर्म मान्यता है की मंदिर में मस्जिद एवं दरगाह का निर्माण नहीं किया जाता है। संपूर्ण भारत में तनोट माता का मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसने मंदिर परिसर में फ़क़ीर बाबा की दरगाह बानी हुई है। यह हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदाइक सद्भावना एवं एकता का जिवंत उदाहरण है।
सीमा सुरक्षा बल का मंदिर प्रमुख है। इसके पूर्व ें छोटा सा मंदिर था मंदिर के बहार एक पठारनुमा आकर में हरे कपडे में लिप्त स्थान था। यहाँ कभी कोई जियारत काने नहीं आता था। इस दरगाह के ऐतिहाइस्क महत्व होने के भी कोई प्रमाण नहीं मिलते है। ऐसा कहा जाता है की शिकरवार के दिन समीप के गाओं से कभी कभी का आ जाते थे। मुस्लिम परिवार के लोग माता के दर्शन करने आते थे। लेकिन इस दरगाह के बारे में उन्हें कोई ज्ञान नहीं था। तनोट माता के मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया तो दरगाह को मंदिर मरिसार में लेकर इसे सूंदर रूप प्रदान किया गया। देवी माता जी के दर्शन करने वाले मुस्लिम भक्त इस दरगाह में पूजा पथ करते है। शिकरवार के दिन तनोट माता के दर्शन करके फिर इस दरगाह में नमाज अदा करते है। वही तनोट माता के मंदिर में हिन्दू श्रद्धालु भी इस दरगाह में प्रसाद चढ़ा कर अगरबत्ती करते है। एक ही स्थल में मंदिर दरगाह होने से लोगो में सद्भावन की भावना जागृत होने का सूंदर उदाहरण है।
मंदिर परिचय
जैसलमेर से 5 किमी दूर तनोट मंदिर जाने वाले सड़क मार्ग पर बड़ा बाग़ स्थान आता है। इसमें जैसलमेर के महारावलों के श्मशान पर बानी हुई कलात्मक छत्रियो एवं समरक विश्व विख्यात है। महारावल जेतसिंग द्वारा निर्मित जैतसर सरोवर है। बड़ा बाघ की तलहटी में सुन्दर उद्यान बना हुआ है। जिसमे आम के सुन्दर विशाल पेड़ है। रियासतकालीन जैसलमेर में इस बाग़ में विभिन्न प्रकार के फल फूल तथा सब्जियों का उत्पादन किया जाता था। इस बाद का उल्लेख जैसलमेर की तवारीख में भी किया गया है। इस स्थान पर क्षेत्रपाल जी का मंदिर स्थानीय लोगो के अटूट आस्था एवं धार्मिक भावना का केंद्र है। जैसलमेर में रहने वाली सभी जातियों द्वारा इस मंदिर की यात्रा की जाती है। विशेषकर विवाह होने पर एवं पुत्र प्राप्ति के समय यहाँ की यात्रा शुभ मणि जाती है। क्षेत्रपाल जी की मूर्ति बिना उत्कीर्ण प्रस्तान से निर्मित है। उनकी पूजा तेल नारियल सिंदूर की पन्नियों व् इत्र सामग्री द्वारा करके चंडी का थैला चढ़ाया जाता है। बड़ा बॉक्स में रहने वाले माली जाती के लोग इसके पुजारी होते है। जैसलमेर के इसी ष्ट्र में पवन गयी है। जिससे ऊर्जा का भरपूर लाभ मरुप्रदेश को मिल रहा है। बड़ा बाग़ में से 15 किमी दूर रामगढ सड़क मार्ग इज लानेना गाओं स्तिथ है। इसी गाओं के पास में दिया बांध स्थित है। एक छोटी सी ककनी नदी जब कोटड़ी गाओं से प्रवाहित होती थी। जो पहले उत्तर की तरफ तथा बाद में आगे चलकर बुझ नामक झील का निर्माण करती थी। उसमे भरी वर्षा के कारण यह अपने सामान्य मांर्ग से भटक कर उतर की तरफ दिया बांध में लाणेला गाओं के पास समां जाती थी। जिससे दलदली क्षेत्र बन जाता था। जिसे स्थानीय नोली में जान कहा जाता था। वर्तमान में भी लानेना गाओं के पास भरी वर्षा के समय रण क्षेत्र में जल कई महीनो तक इकठा रहता है। रेट के समंदर में दूर दूर तक जल संचय का यह दृश्य बड़ा ही मनमोहक होता है। लाणेला गाओं में दुघ दुरी पर जैसलमेर रामगढ रोड पर भादासर गाओं आता है। इस गाओं में रक्तिम भूरे रंग के कठोर पत्थर पाए जाते है। जिसका उपयोग आता पीसने की चक्कियों को बनाने में किया जाता है। भादासर गाओं से आगे रामगढ रोड पर मोकला गाओं आता है. जहा पवन ऊर्जा उत्पादन हेतु चक्कियों की स्थापना की गयी है।
सीमा सुरक्षा बल का मंदिर प्रमुख है। इसके पूर्व ें छोटा सा मंदिर था मंदिर के बहार एक पठारनुमा आकर में हरे कपडे में लिप्त स्थान था। यहाँ कभी कोई जियारत काने नहीं आता था। इस दरगाह के ऐतिहाइस्क महत्व होने के भी कोई प्रमाण नहीं मिलते है। ऐसा कहा जाता है की शिकरवार के दिन समीप के गाओं से कभी कभी का आ जाते थे। मुस्लिम परिवार के लोग माता के दर्शन करने आते थे। लेकिन इस दरगाह के बारे में उन्हें कोई ज्ञान नहीं था। तनोट माता के मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया तो दरगाह को मंदिर मरिसार में लेकर इसे सूंदर रूप प्रदान किया गया। देवी माता जी के दर्शन करने वाले मुस्लिम भक्त इस दरगाह में पूजा पथ करते है। शिकरवार के दिन तनोट माता के दर्शन करके फिर इस दरगाह में नमाज अदा करते है। वही तनोट माता के मंदिर में हिन्दू श्रद्धालु भी इस दरगाह में प्रसाद चढ़ा कर अगरबत्ती करते है। एक ही स्थल में मंदिर दरगाह होने से लोगो में सद्भावन की भावना जागृत होने का सूंदर उदाहरण है।
great work sir
ReplyDeleteGreat work sir
ReplyDeleteit is very useful for us.
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nice sir
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